नज़रिया: नवीन की मौत का जिम्मेदार कौन ?

नज़रिया: नवीन की मौत का जिम्मेदार कौन ?
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अमित बिश्‍नोई


भा रत सरकार को छोड़कर इस बात का अनुमान लगभग सभी को था कि यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिक, जिनमें 18000 से ज़्यादा वह छात्र थे जो अपना भविष्य संवारने के लिए मेडिकल की शिक्षा लेने परदेस गए थे, कहीं किसी त्रासदी का शिकार न हो जांय और आख़िरकार कर्नाटक के नवीन के साथ ऐसा ही हुआ जो पिछले पांच दिन रूसी बमबारी  से बचने के लिए तमाम अन्य साथियों के साथ शेल्टर में छुपा था। बिना किसी संसाधन के, खाने पीने के सामान के यह लोग हालात से लड़ने का प्रयास कर रहे थे और बाट जोह रहे थे कि भारत सरकार उनके लिए कुछ करेगी, उन्हें जंग के मैदान से निकालेगी।
इसी आशा के साथ कि जल्द ही कुछ होगा, नवीन खाने पीने का सामान लेने बाहर निकला, आखिर कब तक भूख से लड़ा जा सकता था, लेकिन नवीन को यह नहीं मालूम था कि बाहर रशियन सेना का कोई गोला उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। एक दिन पहले ही अपने परिवार से बात करने वाला नवीन अब अपने देश ज़िंदा नहीं लौटेगा।

भारतीय दूतावास से मंगलवार सुबह जब यह एडवाइजरी जारी हुई कि आज ही सारे भारतीय नागरिक कीव शहर छोड़ दें, तभी अंदाज़ा हो गया था कि कुछ अनहोनी हुई है और जल्द ही इसकी पुष्टि MEA के ट्वीट से हो गयी कि भारत के भविष्य का एक लाल यूक्रेन के खारकीव शहर में दो देशों की लड़ाई की भेंट चढ़ चुका है। नवीन की मौत तमाम ऐसे सवाल उठा गयी है जिसके बारे में पहले से ही बातें हो रही थीं। आखिर अब सरकार ने रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए IAF के इस्तेमाल का फैसला लिया। यह फैसला पहले भी लिया जा सकता था। अब रशियन बॉर्डर के इस्तेमाल की बात कही जा रही है, पहले भी की जा सकती थी, अब रूस और यूक्रेन  के दूतावास को तलब किया जा रहा, पहले भी किया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

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बात कड़वी है, बहुत से लोगों को बुरी भी लग सकती है लेकिन पूछना पड़ेगा कि क्या किसी नवीन की मौत का इंतज़ार था ? क्या यूक्रेन के हालात की गंभीरता सरकार को अब समझ आयी ? क्या प्रधानमंत्री के लिए चुनाव इतना ज़रूरी है कि वह दिल्ली के बजाय वाराणसी में डेरा जमाये हुए हैं ? क्या उन्हें स्टूडेंट्स की वायरल वीडियोज़ में दर्दभरी पुकार बनावटी लग रही थी ? बलिया से भावुक रिश्ता बताने वाले प्रधानमंत्री जी क्या आपकी यूक्रेन में फंसे हज़ारों भारतीयों के प्रति कोई भावना नहीं है ?

आपने तो एडवाइज़री जारी कर दी कि आज ही कीव शहर खाली कर दो, लेकिन कैसे कर दो? यह नहीं बताया। आपने तो आसानी से कह दिया ट्रेन पकड़ लो, लेकिन चारों तरफ रूसी सेना से घिरे कीव शहर में बाहर निकलना क्या मौत को दावत देना नहीं है? नवीन की मौत ताज़ा उदाहरण है कि बाहर निकलने के क्या परिणाम हो सकते हैं। आपकी एडवाइज़री में तो जारी हो गया कि खाने पीने का सामान और अच्छी मात्रा में नकदी लेकर बॉर्डर का सफर करें, लेकिन 6 दिनों से बंकरों में फंसे यह बच्चे कहाँ से नकदी लाएंगे ? इन बच्चों की असली परेशानी तो यही है कि वह बंकरों से बाहर निकलें कैसे और बॉर्डर तक पहुंचें कैसे ? असली खतरा तो इसी दौरान है। बॉर्डर पहुँच गए तो परेशान होकर ही सही यह लोग घर तो वापस आ ही जायेंगे, सरकार की मदद के बिना भी। इन्हें सरकार से असली मदद तो यूक्रेन के अंदर ही चाहिए जिसके लिए मोदी सरकार ने एक तरह से हाथ खड़े कर लिए हैं। क्या यूक्रेन में भारतीय दूतावास बंद हो चुके हैं, अगर नहीं तो वह इन परेशान हाल बच्चों की मदद को क्यों नहीं पहुँच रहे हैं, भारत पहुँचने वाले बच्चे क्यों यह बता रहे हैं कि दूतावास ने कोई मदद नहीं की ? वह सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर सीमा पर पहुंचे हैं।

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प्रधानमंत्री जी इस आपदा में चुनावी अवसर मत तलाशिये, देश पहुँच रहे छात्रों के साथ आपके मंत्री आपके कहने पर जो इवेंट मैनेजमेंट का खेल खेल रहे हैं उसे बंद कीजिये, बहुत गन्दा लगता है। अगर आपने इन छात्रों की मदद की है तो कोई एहसान नहीं किया है, यह हर सरकार का फ़र्ज़ है और पूर्व की सरकारों ने इससे बड़े बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन किये हैं जिनमें लाखों लोगों को युद्ध के हालात से निकालकर सुरक्षित देश वापस लाया गया। 1990 में सद्दाम हुसैन ने जब कुवैत पर हमला किया तब की सरकार ने एक लाख 70 हज़ार भारतीय नागरिकों को रेस्क्यू किया था, यहाँ तो सिर्फ 20 हज़ार का मामला है और उसमें से अभी तक आप 2000 लोगों को ही evacuate कर पाएं हैं।

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पीएम महोदय यह चुनाव मन्त्री बनने का समय नहीं है। माना कि यूपी में आपकी सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है मगर इससे ज़्यादा परेशानियों का सामना यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिकों को करना पड़ रहा है जिनको सही सलामत वतन वापस लाना आपका परम कर्तव्य है। हमने एक नवीन को खो दिया है, प्रधानमंत्री प्रयास कीजिये कि कोई और नवीन न खोने पाए। मैंने अपने पिछले लेख में भी लिखा था कि आपके ऑपरेशन गंगा के दौरान एक भी भविष्य को खोना पड़ा तो इतिहास आपको माफ़ नहीं करेगा और लोग भी। बाक़ी आपसे बड़ा अंतर्यामी कोई नहीं। अंत में मैं नवीन की आत्मा की शांति की कामना के साथ अपनी बात को समाप्त करूंगा और उम्मीद करूंगा कि किसी और नवीन के साथ ऐसा न हो।

(Buziness bytes.com से साभार संपादित। ये लेखक के अपने विचार हैं)

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