नज़रिया: क्या अब भारतीय राजनीति में असली लड़ाई जाति की नहीं, धर्म की होगी?
हरिशंकर व्यास
पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने हिंदू-मुस्लिम का जो राग छेड़ा और उसके बाद जम्मू कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान के आतंकवादियों ने धर्म पूछ कर हिंदुओं का जैसा नरसंहार किया उससे भारत की राजनीति बड़े पैमाने पर प्रभावित हो सकती है। भारत में पिछले कुछ समय से राजनीति बदली थी। लोकसभा चुनाव में संविधान और आरक्षण बचाने की लड़ाई कारगर साबित हुई थी। भाजपा की मंदिर और धर्म के एजेंडे के बरक्स विपक्षी पार्टियों ने अपना गठबंधन बनाया था और अपना एजेंडा आगे किया था। वह एजेंडा धर्म की राजनीति को फेल करने वाला था।
उसमें जाति आधारित जनगणना की मांग थी। आबादी के अनुपात में आरक्षण बढ़ाने का वादा था और संविधान बचाने का संकल्प था। भाजपा के कई नेताओं ने चार सीट जीतने और उसके बाद संविधान बदलने की जो बात कही थी उसका मुद्दा भी था। एक तरफ भाजपा अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन की हवा पर सवार थी और उसको लग रहा था कि यह मुद्दा हिंदुओं को पहले से ज्यादा एकजुट कर देगा लेकिन उसके मुकाबले जाति का मुद्दा ज्यादा प्रभावी हो गया। भाजपा ने अपनी जीती हुई 63 सीटें गंवा दी। सहयोगियों की स्थिति भी अच्छी नहीं रही।
लोकसभा के इस नतीजे के बाद हालांकि राज्यों के चुनाव में सब कुछ बदल गया और भाजपा ने ज्यादातर राज्यों में चुनाव जीत लिए। लेकिन उन राज्यों में भी भाजपा की जीत धर्म की बजाय जातिगत गणित बैठाने से हुई। तभी भाजपा किसी ऐसे मौके की तलाश में थी, जिससे विपक्षी पार्टियों की जाति की राजनीति की काट हो सके। वह मौका मिला है मुनीर के दो राष्ट्र के सिद्धांत वाले भाषण और उसके बाद पहलगाम में हुए हिंदुओं के नरसंहार से। धर्म पूछ कर हिंदू पुरुषों को गोली मार देने और महिलाओं से कथित तौर पर यह कहने कि, ‘जाओ जाकर मोदी को बता दो’, देश की राजनीति में बदलाव आ सकता है।
इससे यह धारणा बन रही है कि असली लड़ाई जाति की नहीं धर्म की है और सभी हिंदुओं को एकजुट रहने की जरुरत है। दूसरी धारणा यह बन रही है कि धर्म रक्षा की यह लड़ाई मोदी लड़ रहे हैं। यह स्थिति भाजपा के बहुत अनुकूल होती दिख रही है।
पहलगाम की घटना के तुरंत बाद हिंदुवादी संगठनों की प्रतिक्रिया इसी लाइन पर थी। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के मुखपत्रर ‘पांचजन्य’ के सोशल मीडिया अकाउंट से एक पोस्ट की गई, जिसमें लिखा गया था, ‘उन्होंने धर्म पूछा, जाति नहीं’। उसके बाद से सोशल मीडिया में यह नैरेटिव चल रहा है कि आतंकवादियों ने हिंदुओं को मारा। उन्होंने यह नहीं पूछा कि हिंदुओं में कौन किस जाति का है। इसलिए हिंदुओं को भी जाति से ऊपर उठ कर सोचना चाहिए। यह रिपोर्ट भी आई कि असम के एक प्रोफेसर को ‘कलमा’ पढऩा आता था और उसने आतंकवादियों के कहने पर कलमा पढ़ दिया तो उसकी जान बच गई।
तभी भाजपा के एक सांसद ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर ‘कलमा’ लिख कर डाला और कहा कि इसे याद कर रहे हैं, पता नहीं कहां पढऩा पड़ जाए। हालांकि इसके लिए कई लोगों ने उनकी आलोचना की और कहा कि उनको अपनी ही सरकार पर भरोसा नहीं है कि वह सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती है। लेकिन यह मामला सुरक्षा का नहीं है, बल्कि राजनीतिक नैरेटिव का है। इसी नैरेटिव के तहत अब यह प्रचार किया जा रहा है कि आतंकवाद का धर्म होता है। लोग इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ कर बोलने लगे हैं। कहा जा रहा है कि ‘सिख आतंकवाद’ या ‘खालिस्तानी आतंकवाद’ बोला जाता है।
इसी तरह ‘हिंदू आतंकवाद’ भी प्रचारित किया गया। लेकिन ‘इस्लामिक आतंकवाद’ या ‘मुस्लिम आतंकवाद’ कहने पर लोग नाराज हो जाते थे या कहने वाले को सांप्रदायिक करार दिया जाता था। लेकिन अब आतंकवादियों ने खुद बता दिया कि उनका क्या धर्म है।
मुनीर के हिंदू मुस्लिम वाले भाषण और पहलगाम की घटना के बाद यह नैरेटिव बन रहा है कि हिंदुओं को एकजुट रहना है। घटना के बाद मुंबई के एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुओं की एकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि एक रहेंगे तो कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। कुछ दिन पहले भी उन्होंने कहा था कि हिंदुओं को एक मंदिर में जाने और एक कुएं पर पानी पीने का चलन बढ़ाना चाहिए। यानी हिंदुओं के अंदर जाति का जो भेद है उसको खत्म करना चाहिए।
कहने की जरुरत नहीं है कि आने वाले दिनों में यह प्रचार जोर पकड़ेगा। अगर कहीं गलती से इसके वीडियो आ गए कि आतंकवादी धर्म पूछ कर गोली मार रहे हैं तो इस नैरेटिव को स्थापित करना बहुत आसान हो जाएगा। ध्यान रहे पहलगाम में आतंकवादियों के हमले से बचे पर्यटकों ने बताया है कि आतंकवादियों ने बॉडी कैम पहना हुआ था यानी वे सारी घटना को रिकॉर्ड कर रहे थे। सामरिक मामलों के जानकारों का कहना है कि लश्कर ए तैयबा ने पिछले कुछ समय से यह शुरू किया है कि उसके आतंकवादी बॉडी कैमरे से सब कुछ रिकॉर्ड करते हैं और इसका इस्तेमाल अपने धर्म युद्ध को ग्लोरिफाई करने के लिए करते हैं।
अगर ऐसा कोई झूठा सच्चा वीडियो आता है तो बिहार चुनाव में सबसे पहले उसकी परीक्षा होगी। हालांकि बिहार में विधानसभा चुनाव में आमतौर पर धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं होता है लेकिन भाजपा प्रयास में कोई कमी नहीं रखेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मधुबनी से ही आतंकवादियों को मिटा देने की चेतावनी जारी की है। सरकार आतंकवादियों के खिलाफ जो भी कार्रवाई करेगी उसको बिहार से जोड़ा जाएगा और कहा जाएगा कि प्रधानमंत्री ने बिहार में जो कहा था उसे पूरा किया गया।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

