पड़ताल: आखिर कहां गायब हो जाते हैं देश के ये हज़ारों मासूम बच्चे

पड़ताल: आखिर कहां गायब हो जाते हैं देश के ये हज़ारों मासूम बच्चे
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वसी जैदी
भारत में हर दिन हजारों की संख्या में बच्चे लापता हो रहे हैं, वह भी एक ऐसे दौर में जब हर कहीं पलक झपकते सूचना पहुंच जाती हो, तो हर साल देशभर से लगभग 80,000 से ज्यादा बच्चों के गायब होने का क्या मतलब है? राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि साल 2022 में 83,350 बच्चे गायब हुए, जिनमें 20,380 लडक़े व 62,946 लड़कियां और 24 ट्रांसजेंडर थे।  इनमें ज्यादातर तलाश भी लिए गये लेकिन 2781 बच्चे हमेशा हमेशा के लिए ओझल हो गये। जबकि इसके पहले एनसीआरबी ने जो डाटा 2023 में पेश किया था, उसमें लापता हुए बच्चों की संख्या 76,069 थी।  मतलब साफ है कि अगले एक साल में लापता हुए बच्चों की संख्या में तकरीबन 6000 की बढ़ोतरी हो गई।  जबकि 2022में गायब होने वाले बच्चों की संख्या सिर्फ 33,650 थी।  इन आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों के गायब होने की संख्या में भारी बढ़ोतरी हो रही है। सवाल है एक तरफ जहां बच्चों की सुरक्षा के लिए हर साल नई से नई बातें कही जाती हैं, कसमें खायी जाती हैं और आधुनिक से आधुनिक उपकरण लगाकार सुरक्षा व्यवस्था की जाती है।  फिर भी मासूमों के गायब होने के सिलसिले में जरा भी कमी आने की बजाय बढ़ोतरी क्यों रही है? अगर इस मामले में हम एनसीआरबी के आंकड़ों की जगह उन गैरसरकारी संस्थाओं पर यकीन करें, जो बच्चों के लापता होने की समस्या में काम करती हैं, तो बच्चों के गायब होने की वास्तविक संख्या इससे ज्यादा है। इनके मुताबिक तो हर साल 80-85 हजार नहीं बल्कि कई लाख बच्चे गायब हो रहे हैं।  यही वजह है कि आज देश में हर एक मिनट में कम से कम दो बच्चे गायब हो रहे हैं। घर से बिछुडक़र आखिर ये मासूम कहां चले जाते हैं? क्योंकि जो बच्चे अगले एक महीने तक नहीं मिलते, घरों से गायब होने वाले ऐसे बच्चों के घर वापस न आने की आशंका करीब सौ प्रतिशत हो जाती है। गायब होने के बाद जो बच्चे मिल जाते हैं, उनके बारे में तो हम थोड़ा-बहुत जानते भी होते हैं कि इन्हें कौन और कैसे बहला-फुसलाकर ले गया था, लेकिन जो बच्चे कभी लौटकर आये ही नहीं, उनके बारे में मां-बाप कुछ भी नहीं जानते। संचार के साधनों के बावजूद एक-डेढ़ प्रतिशत बच्चे गायब होने के बाद कभी वापस नहीं आते। हालांकि अपराधियों की धड़पकड़ में हाल के सालों में इजाफा हुआ है।  पुलिस के पास आज पहले के मुकाबले जांच पड़ताल के बेहतर संसाधन हैं, इसके बाद भी गायब बच्चों की एक तय संख्या लौटकर घर नहीं आती, तो आखिर उनका होता क्या है? उनका कोई सुराग क्यों नहीं मिलता ?
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ऑफ इंडिया के डाटा विश्लेषण के मुताबिक हर दिन हजारों की संख्या में गायब होने वाले बच्चों में से बहुत मामूली संख्या में ही बच्चे लौटकर आ पाते हैं।  सैकड़ों बच्चों की तो रिपोर्ट ही नहीं लिखी जाती, उनके मां-बाप द्वारा कोशिश किये जाने पर पुलिस उन्हें डांटकर थाने से भगा देती है।  जिन बच्चों को निठारी कांड में क्रूरता की बलि चढ़ा दिया गया था, उनके मां-बाप ने पुलिस से उनके लापता होने की शिकायतें की थीं, लेकिन पुलिस ने कोई ध्यान ही नहीं दिया वास्तव में जो बच्चे कभी भी वापस घर नहीं आ पाते, वो अपराधियों के चंगुल में फंस जाते हैं।  इन बच्चों की बड़ी संख्या में तस्करी की जाती है, जिन्हें अरब और अन्य देशों में बेच दिया जाता है।  गायब होने वाली लड़कियों के साथ अकसर रेप जैसी घिनौनी वारदातें होती हैं और ज्यादातर को बेच दिया जाता है।  इंटरनेशनल क्राइम इंस्टिट्यूट के अनुसार ऐसे सैकड़ों बच्चों के अंगों की तस्करी होती है।  सफेदपोश संगठन इन बच्चों के अंगों को अकसर चुपचाप निकाल लेते हैं। बच्चे आतंकवाद का भी सबसे आसान हथियार बन जाते हैं। कुछ साल पहले आयी यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के सत्ता विरोधी सशस्त्र संगठनों ने बच्चों को अपने संघर्षों में हिस्सेदार बना दिया है। शायद इसीलिए बच्चों के खोने की आपराधिक घटनाओं में तमाम सरकारी, गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद कमी नहीं आ रही बल्कि खोने वालों बच्चों की तादाद लगातार बढ़ रही है।  जाहिर है यह बेहद चिंताजनक है, इस पर बहुत गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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