पड़ताल: धर्म और पूजा में स्त्रियों की भूमिका का एक तथ्यपूर्ण विश्लेषण

पड़ताल: धर्म और पूजा में स्त्रियों की भूमिका का एक तथ्यपूर्ण विश्लेषण
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विवेक रंजन श्रीवास्तव
धार्मिक परंपराओं में स्त्रियों की भूमिका हमेशा से विवाद का विषय रही है। कई धर्मों में स्त्रियों को पूजा-अर्चना, धार्मिक अनुष्ठानों और धर्मस्थलों में पुरुषों के बराबर अधिकार नहीं दिए गए हैं। हालाँकि, कुछ धर्मों के मूल ग्रंथों में स्त्रियों को समानता का दर्जा दिया गया है, लेकिन व्यवहार में अभी भी भेदभाव बना हुआ है। आइए, विभिन्न धर्मों में स्त्रियों की पूजा-पद्धति में भागीदारी की स्थिति का विश्लेषण करें–

इस्लाम में स्त्रियों की पूजा (नमाज) में भागीदारी..
इस्लाम में धार्मिक समानता का सिद्धांत है, लेकिन व्यवहार में महिलाओं को कई प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।
क्या कहता है कुरान?
– कुरान स्पष्ट रूप से महिलाओं को नमाज पढऩे से नहीं रोकता।
– हदीसों में भी महिलाओं के लिए घर में नमाज पढऩे को बेहतर बताया गया है, लेकिन मस्जिद जाने से मना नहीं किया गया।
– पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के समय में महिलाएँ मस्जिद जाती थीं और पुरुषों के पीछे अलग पंक्ति में नमाज अदा करती थीं।
वर्तमान स्थिति:
हाल ही दोहा में एक अलग मस्जिद स्त्रियों के लिए बनाई गई है।
– भारत और कई देशों में अधिकांश मस्जिदों में महिलाओं के लिए अलग प्रार्थना स्थल नहीं होता, जिसके कारण उन्हें मस्जिद जाने से रोका जाता है।
– कुछ प्रगतिशील मस्जिदें (जैसे केरल की कुछ मस्जिदें और दिल्ली की जामा मस्जिद) महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था करती हैं, लेकिन यह अपवाद है।
– महिला आयोग और सरकार को चाहिए कि वे मस्जिद प्रबंधन से महिलाओं के लिए पृथक प्रार्थना कक्ष की माँग करें, ताकि धार्मिक समानता सुनिश्चित हो सके।

हिंदू धर्म में स्त्रियों की पूजा में भागीदारी..
हिंदू धर्म में स्त्रियों को देवी के रूप में पूजा जाता है, लेकिन कई मंदिरों में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध हैं।
शास्त्रों का दृष्टिकोण  
– वेदों और पुराणों में महिलाओं को यज्ञ और पूजा में बराबरी का अधिकार दिया गया है।
– ऋग्वेद में लोपामुद्रा, गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाओं का उल्लेख है, जो धार्मिक चर्चाओं में भाग लेती थीं।
वर्तमान स्थिति:
– कुछ मंदिरों (जैसे सबरीमला, पुरी जगन्नाथ मंदिर) में महिलाओं के प्रवेश पर रोक है, जिसे लेकर विवाद हो चुके हैं।
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को अनुमति दी, लेकिन व्यवहार में इसका पालन नहीं हो रहा।
– महिला आयोग और सरकार को चाहिए कि वे ऐसे मंदिरों के नियमों की समीक्षा करें और संशोधन करवाएँ, ताकि महिलाएँ बिना भेदभाव के पूजा कर सकें।

-ईसाई धर्म में स्त्रियों की भूमिका..
ईसाई धर्म में महिलाओं को चर्च में प्रार्थना करने की पूरी आजादी है, लेकिन कुछ संप्रदायों में पादरी बनने पर प्रतिबंध है।
बाइबिल का दृष्टिकोण:
– बाइबिल में पौलुस के कुछ उल्लेखों में महिलाओं को चुप रहने को कहा गया है, लेकिन यीशु ने स्वयं महिलाओं को समानता दी।
वर्तमान स्थिति: 
– कैथोलिक चर्च में महिलाएँ पादरी नहीं बन सकतीं, जबकि प्रोटेस्टेंट चर्च में यह अनुमति है।
– भारत में अधिकांश चर्चों में महिलाएँ स्वतंत्र रूप से प्रार्थना कर सकती हैं।

4. सिख धर्म: सबसे अधिक समानतावादी
सिख धर्म में लैंगिक समानता को मूलभूत सिद्धांत माना गया है।
गुरु ग्रंथ साहिब का दृष्टिकोण: 
– गुरु नानक देव जी ने कहा, “सो क्यों मंदा आखिए जित जम्मे राजान” (वह क्यों बुरी कहलाए, जिससे राजा पैदा होते हैं)।
– सिख इतिहास में महिलाएँ गुरुद्वारों का प्रबंधन करती रही हैं।
वर्तमान स्थिति:
– गुरुद्वारों में महिलाएँ बिना किसी भेदभाव के ग्रंथी (पाठक) और सेवादार बन सकती हैं।
– लंगर में भी पुरुष और महिलाएँ साथ बैठकर भोजन करते हैं।
क्या बदलाव की जरूरत है?  
– मस्जिदों में महिलाओं के लिए अलग प्रार्थना कक्ष बनाए जाने चाहिए ताकि वे बिना किसी रोक-टोक के नमाज अदा कर सकें।
– हिंदू मंदिरों से महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध हटाए जाने चाहिए, क्योंकि यह संवैधानिक समानता के खिलाफ है।
– महिला आयोग और सरकार को धार्मिक संस्थानों के साथ बातचीत करके इन मुद्दों को हल करना चाहिए।
धर्म का उद्देश्य मानवता को जोडऩा है, तो फिर स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव क्यों? समय आ गया है कि धार्मिक संस्थाएँ महिलाओं को पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों में बराबरी का दर्जा दें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Parvatanchal

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