चिंतन: लोकतंत्र की मजबूती के लिए मतदान के प्रति विश्वास बनाये रखना जरूरी

चिंतन: लोकतंत्र की मजबूती के लिए मतदान के प्रति विश्वास बनाये रखना जरूरी
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अशोक भगत
भारत का लोकतंत्र अद्भुत है, अभिनव है। इसकी तुलना अन्य किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था से नहींअशोक की जा सकती है। इसे बचाने और मजबूत करने की जिम्मेदारी हमारी पीढ़ी की है। मतदान प्रतिशत में लगातार ह्रास हमारे लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। हमें इस संबंध में तसल्ली से विचार करना होगा। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या रिपोर्ट 2022 के अनुसार दुनिया की जनसंख्या आठ अरब पार कर गयी है। उस रिपोर्ट में बताया गया है कि इसमें सबसे बड़ी भूमिका भारत की है। जहां एक ओर विश्व जनसंख्या बढ़ोतरी में भारत का योगदान 17 प्रतिशत के करीब रहा, वहीं पड़ोसी देश इस मामले में महज सात प्रतिशत का ही योगदान कर पाया है। मतदाताओं की दृष्टि से भी भारत सबसे बड़ा देश है। भारत में मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 97 करोड़ है। हाल में 18 से 29 वर्ष की आयु वर्ग के दो करोड़ से अधिक मतदाता पंजीकृत हुए हैं। इनमें महिलाओं की हिस्सेदारी ज्यादा है। देश की आबादी का 66।76 प्रतिशत हिस्सा युवा हैं।
भारतीय लोकतंत्र की और कई विशेषताएं हैं। भारत की चुनाव प्रणाली बहुदलीय है। यहां यूरोपीय देशों की तरह दो दलों के बीच मुकाबला नहीं होता है। यहां निर्दलीय भी चुनाव में प्रत्याशी हो सकते हैं। विभिन्न सामाजिक संरचनाओं पर आधारित संगठनों ने भी सामाजिक हितों की रक्षा के लिए अपने दल बना रखे हैं। यहां चुनावी मुद्दे भी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय आधारों पर तय होते हैं। यह लोकतंत्र की विविधता के साथ-साथ इसकी व्यापकता का अप्रतिम उदाहरण है। विभिन्न शासन पद्धतियों का अनुभव देखें, तो बहुत बढ़िया नहीं कहा जा सकता है। पड़ोसी देश चीन में साम्यवादी अधिनायकवाद है, जहां लगभग 85 वर्षों से एक ही दल का शासन है। अगल-बगल के देशों में भी लोकतंत्र केवल कहने के लिए है। भारत के सुदूर पश्चिम और पूर्व तक लोकतंत्र के छिटपुट द्वीप ही दिखते हैं। कहीं धर्म के आधार पर शासन व्यवस्था है, तो कहीं मार्क्स और लेनिन के शिष्य मजदूरों की तानाशाही के नाम पर सत्ता पर कब्जा कर देश को दास बना रखे हैं। ऐसे में भारतीय लोकतंत्र को बचा कर रखने की जिम्मेदारी हम सभी की है।
यहां भी कई प्रकार की शक्तियां लोकतंत्र को अपना ग्रास बनाने पर तुली हैं। लोगों में भारतीय लोकतंत्र के प्रति अविश्वास पैदा करने की कोशिश हो रही है। इसके कारण मतदान प्रतिशत में ह्रास देखने को मिल रहा है। यह अच्छा संकेत नहीं है। लोकतंत्र में सरकार के कार्यों व नीतियों पर टीका-टिप्पणी करने पर कोई रोक नहीं है, तो मतदाताओं को इसके लिए मतदान का हिस्सा बनना भी उनका दायित्व है। सत्य है कि हम अन्य विकसित या नव विकसित देशों के चकाचौंध से प्रभावित हो रहे हैं। यह भी सही है कि हमारे पड़ोसी देश में विकास की गति हमसे थोड़ी ज्यादा है, लेकिन हम जैसी स्वतंत्रता का उपभोग कर रहे हैं, वैसा उस देश में नहीं है। वहां बड़े आर्थिक क्षेत्रों में मजदूरों का हाल पूंजीवादी देशों से ज्यादा दयनीय है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो बिल्कुल ही नहीं है। धरना, प्रदर्शन या आंदोलनों पर प्रतिबंध है। जायज मांग पर भी दमन का शिकार होना होता है। अफगानिस्तान, मध्य-पूर्व के देशों में मुस्लिम शरिया कानून लागू है, तो भारत के विभाजन के उपरांत निर्मित देशों में सेना का अधिकार है। ऐसे में हमें अपने लोकतंत्र को बचाना होगा और उसका एकमात्र रास्ता लोकतंत्र के प्रति विश्वास व आस्था बनाये रखना है।
लोकतंत्र के प्रति आस्था केवल भावनात्मक नहीं हो सकती, इसके साथ कुछ भौतिक कर्मकांड भी हैं, जिनमें सबसे बड़ा महत्व चुनाव में प्रत्यक्ष भागीदारी का है। मताधिकार के प्रयोग से ही देश की सरकार बनती है। मताधिकार के प्रयोग के लिए कई विकल्प हैं। हम अपने हित को ध्यान में रख कर किसी भी दल के प्रत्याशी को वोट दे सकते हैं। हमारे देश में अमूमन पांच वर्ष पर संसदीय चुनाव होता है। मध्यावधि चुनाव भी होते रहे हैं। इसी चुनाव से देश की दिशा और दशा तय होती है। चुनाव में हिस्सा लेना और प्रत्यक्ष रूप से मतदान करना हमारी न केवल राष्ट्रीय जिम्मेदारी है, अपितु संवैधानिक कर्तव्य भी है। यह हमारा मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन वोट डालना हमारा मौलिक कर्तव्य जरूर है।
हमारे लोकतंत्र में चुनाव से संबंधित एक विकल्प नोटा का चयन भी है। यदि आप किसी भी दल से संतुष्ट नहीं हैं, तो नोटा का बटन दबा सकते हैं। यह भी अपने आप में महत्वपूर्ण है क्योंकि शासन प्रतिष्ठान को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि जिनके लिए उन्होंने शासन तंत्र विकसित कर रखा है, उनमें देश की वर्तमान पार्टियों के प्रति अविश्वास पैदा हो गया है। इसलिए चुनाव में भारत के प्रत्येक मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करना चाहिए। इससे देश की सरकार बनती है, जो हमारे हित की चिंता के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह होती है। यदि हम में अपने लोकतंत्र के प्रति आस्था समाप्त हो गयी और हमने चुनाव में भाग लेना बंद कर दिया, तो वह दिन दूर नहीं, जब हम अपने ही देश के कुछ प्रभावशाली लोगों के गुलाम बन जायेंगे। यदि लोकतंत्र को मजबूत बनाये रखना है, तो हमें चुनाव में भाग लेना होगा और अपने मताधिकार का प्रयोग करना होगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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