चिंताजनक: कैंसर की वैश्विक राजधानी बनने को अग्रसर भारत

चिंताजनक: कैंसर की वैश्विक राजधानी बनने को अग्रसर भारत
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डॉ अंशुमान
बीते एक दशक से अधिक समय से मेरा यह कहना रहा है कि भारत 2025 तक कैंसर की वैश्विक राजधानी बन जायेगा। चार साल पहले आयी एक अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत कैंसर का सबसे बड़ा केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। अभी आयी अपोलो की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत दुनिया की कैंसर राजधानी बन रहा है। सच यही है। अनेक लोग मानते हैं कि कैंसर की जांच अधिक होने लगी है, इसलिए अधिक मामले सामने आने लगे हैं। लेकिन संख्या में वृद्धि का यह चौथा कारण है। पहला कारण यही है कि कैंसर के नये मामले बड़ी संख्या में आ रहे हैं।
दूसरी स्थिति यह है कि पहले अधिक आयु में, 60-65 साल के बाद, कैंसर होने के मामले आते थे, पर अब कम आयु में भी यह बीमारी होने लगी है। तीसरा बदलाव यह है कि पहले कुछ प्रकार के कैंसर के बारे में माना जाता था कि यह शहर में होता है, जैसे महिलाओं में स्तन कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, पर अब ऐसा ग्रामीण महिलाओं में भी हो रहा है। स्पष्ट है कि शहरी जीवनशैली गांवों में भी पसर गयी, जिसका नतीजा हम देख रहे हैं।
भारत में महिलाओं में सर्विक्स कैंसर (बच्चेदानी के मुंह का कैंसर) अधिक है। अगर हम दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों की बात करें, तो सबसे अधिक स्तन कैंसर के मामले हैं और उसके बाद सर्वाइकल कैंसर आता है। मतलब सर्विक्स और स्तन कैंसर के मामले सबसे अधिक हैं। उत्तर भारत, खासकर गंगा बेल्ट, में महिलाओं में गॉल ब्लाडर (पित्त की शैली) का कैंसर बहुत सामान्य है। आप कानपुर से नीचे पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार होते हुए पश्चिम बंगाल में चौबीस परगना तक चले जाएं, यह कैंसर इतना ज्यादा है कि पूरी दुनिया हैरत में है कि यह हो क्या रहा है।
इसकी बड़ी वजह गंगा में बहाये जाने वाले खतरनाक औद्योगिक अपशिष्ट हैं। इस संबंध में नियम तो हैं, पर उनकी परवाह किसी को नहीं है और सारा कचरा गंगा नदी में प्रवाहित किया जाता है। यह कचरा खाद्य पदार्थों के माध्यम से शरीर में पहुंचता है। इस क्षेत्र में चने का इस्तेमाल खूब होता है। अगर चने का रखरखाव ठीक से नहीं होता, तो उसमें एक फंगस लग जाता है, जो कैंसर का कारण है। तीसरी वजह सरसों का तेल है। जिस सरसों में फंगस लगता है, उसका तेल इस क्षेत्र में अधिक मिलता है।
देश के स्तर पर पुरुषों में फेफड़े का कैंसर अभी बहुत सामान्य हो गया है। उत्तर भारत और गुजरात के सौराष्ट्र के इलाके में मुंह और गले का कैंसर सबसे अधिक है। तीसरे स्थान पर प्रोस्टेट कैंसर है। प्रोस्टेट (गदूद) एक ग्रंथि है, जो पेशाब की थैली के नीचे होती है। मुंह, गले और फेफड़े के कैंसर का मुख्य कारण है तंबाकू- किसी भी रूप में। लेकिन जिन लोगों ने कभी तंबाकू का सेवन नहीं किया है, उनमें फेफड़े के कैंसर के मामले अब बढ़ने लगे हैं। इसका मुख्य कारण वायु प्रदूषण है। चूंकि यह सभी जानते हैं कि तंबाकू और शराब के सेवन से कैंसर होता है, इसलिए उस पर चर्चा करने से कोई नयी सूचना सामने नहीं आयेगी।
यह सोचना भी बहुत जरूरी है कि उन लोगों को कम आयु में कैंसर क्यों हो रहा है, जिन्होंने कभी न तंबाकू लिया और न शराब पिया। लोगों की जीवनशैली अच्छी नहीं है। भोजन ठीक नहीं है। खाने-पीने की चीजें व्यापक तौर पर दूषित हैं। इसकी रोकथाम के लिए जो सरकारी एजेंसियां हैं, वे ठीक से अपना काम नहीं कर रही हैं। उन्हें देखना चाहिए कि खाने-पीने की चीजों में भारी धातु और खतरनाक रसायन तो नहीं हैं। पानी और वायु भी प्रदूषित हैं।
आजकल दुकानों और मॉल से अत्यधिक प्रसंस्करित खाना लेकर और माइक्रोवेव में गर्म कर खाने का चलन बढ़ गया है। ऐसा ही एप-आधारित सुविधाओं से खाना मंगाने का मामला है। ब्राजील के नोवा क्लासिफिकेशन में अत्यधिक प्रसंस्करित खाना को जहर की श्रेणी में रखा गया है। हमें समझना होगा कि तीन प्रकार की रसोई होती हैं। एक होती है भगवान की रसोई, जिसमें प्राकृतिक खाना निकलता है, जिसे हम सीधे खा सकते हैं, जैसे फल, सब्जी, कंद, मूल आदि। यह स्वास्थ्य के लिए बढ़िया है। दूसरा है इंसान की रसोई, जहां हम शुद्ध भारतीय भोजन बनाते हैं। इससे भी हम स्वस्थ रहेंगे। तीसरी रसोई शैतान की रसोई है, जहां से अत्यधिक प्रसंस्करित खाना, जंक फूड, फास्ट फूड, पैक्ड फूड, ड्रिंक आदि निकलते हैं। ऐसे भोजन हमें बीमार बना रहे हैं।
ऐसे भोजन से अत्यधिक शुगर पैदा होता है, जो कैंसर का कारण है। प्लास्टिक, टेट्रा आदि में पैक हुए भोजन से बीस्फेनॉल, थैलेक्स आदि निकलते हैं, जो कैंसर का कारक बनते हैं। सोने-जागने, खाने-पीने की अनियमितता से माइटोकॉन्ड्रियल इंज्यूरी होती है, जो एक समय के बाद कैंसर की वजह बन सकती है। ब्रिटेन के एक अध्ययन- नर्सेज स्टडी- का निष्कर्ष है कि जो लोग रात की ड्यूटी करते हैं, उनमें स्तन कैंसर का खतरा बढ़ा है। अभी सबसे जरूरी है कि लोग अपनी जीवनशैली पर ध्यान दें, ताकि कैंसर हो ही नहीं। यदि शरीर में कोई भी असामान्य लक्षण दिखे, तो चिकित्सक के पास जाना चाहिए और उन्हें यह भी कहना चाहिए कि वे कैंसर की स्क्रीनिंग भी कर लें।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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बढ़ता पारिवारिक कर्ज
हमारे देश में हाल के वर्षों में पारिवारिक कर्ज में बढ़ोतरी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है। वित्तीय सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनी मोतीलाल ओसवाल की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि दिसंबर 2023 में घरेलू कर्ज अपने सर्वाधिक स्तर पर पहुंच गया। सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में पारिवारिक ऋण का अनुपात 40 प्रतिशत हो गया है। साथ ही, जीडीपी में पारिवारिक बचत का अनुपात लगभग पांच प्रतिशत रह गया है, जो ऐतिहासिक रूप से सबसे कम है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले वर्ष सितंबर में बताया था कि परिवारों की बचत का अनुपात वित्त वर्ष 2022-23 में 5।1 प्रतिशत हो गया, जो 47 वर्षों में सबसे कम है। यह सही है कि बचत कम कर और कर्ज लेकर बहुत से लोग परिसंपत्तियां या उपभोक्ता वस्तुएं खरीदते हैं। ऐसे लोग भविष्य में अपनी आमदनी को लेकर आश्वस्त रहते हैं या उन्हें अपने निवेश से लाभ होने की आशा रहती है। लेकिन विभिन्न आंकड़ों के साथ बचत में कमी और कर्ज बढ़ने के मसले को देखें, तो चिंताजनक तस्वीर उभरती है।
वित्त वर्ष 2022-23 में घरेलू कर्ज जीडीपी के 38 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया था। इससे अधिक आंकड़ा केवल 2020-21 में रहा था, जो कि महामारी की भयावह मार का साल था। हालिया रिपोर्ट में यह रेखांकित किया गया है कि घरेलू कर्ज में वृद्धि में सबसे प्रमुख हिस्सा पर्सनल लोन का है। उल्लेखनीय है कि ऐसे लोन में ब्याज की दर भी बहुत अधिक होती है। माना जाता है कि पर्सनल लोन बहुत मजबूरी में ही लोग लेते हैं। क्रेडिट कार्ड से खर्च और डिफॉल्ट में भी वृद्धि हो रही है। रिजर्व बैंक पहले ही असुरक्षित कर्जों के बारे में बैंकों को सचेत रहने की सलाह दे चुका है।
हालांकि वृद्धि दर उत्साहजनक है, लेकिन आमदनी में बढ़ोतरी अपेक्षा के अनुसार नहीं है। महंगाई की वजह से भी परिवारों पर दबाव बढ़ा है। मुद्रास्फीति के मोर्चे पर कुछ राहत मिली है, पर रिजर्व बैंक ने बार-बार कहा है कि यह अभी भी चिंता का कारण बना हुआ है। इसी कारण से हालिया मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरों में कटौती नहीं की गयी है। चूंकि आमदनी में बढ़त धीमी है, तो उसका असर उपभोग पर पड़ना स्वाभाविक है। वित्त वर्ष 2023-24 में पारिवारिक निवेश और निजी उपभोग दोनों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गयी है। यदि बचत बढ़ाने, असुरक्षित कर्ज घटाने तथा उपभोग बढ़ाने पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया, आर्थिक स्थिरता पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। आर्थिक विकास का लाभ आबादी के अधिकाधिक हिस्से तक पहुंचे। इस दिशा में ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। बचत और कर्ज में संतुलन बनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

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