नज़रिया: जोशीमठ की संघर्षरत जनता के खिला़फ सुनियोजित दुष्प्रचार की साज़िश और सीपीएम का राज्यव्यापी हस्तक्षेप

नज़रिया: जोशीमठ की संघर्षरत जनता के खिला़फ सुनियोजित दुष्प्रचार की साज़िश और सीपीएम का राज्यव्यापी हस्तक्षेप
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प्रस्तुति: अनंत आकाश

जोशीमठ की संघर्षशील जनता की समस्याओं का समाधान निकालने के बजाय ,सरकार एवं भाजपा द्वारा उनको माओवादी कहना गैरजिम्मेदार कृत्य है। इस साजिश के विरोध में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का राज्यव्यापी हस्तक्षेप उल्लेखनीय है। दरअसल, भाजपा द्वारा यह पहली बार नहीं किया जा रहा है। जेएनयू ,जामिया मिलिया के छात्र आंदोलन और तीन कृषि कानूनों के खिलाफ उपजे किसान आंदोलन से लेकर नागरिक संशोधन कानून के खिलाफ चले आंदोलन को बदनाम करने की साजिश पहले भी हो चुकी है। यहाँ बताना जरूरी हो गया है कि जेएनयू ,जामिया तथा एन आर सी आंदोलन से जुड़े कई लोग आज भी जेल की सलाखों के पीछे हैं। इस तरह दर्ज अनेक मुकदमे न्यायालयों में चल रहे हैं ।आज सरकार की जनविरोधी, साम्प्रदायिक एवं कोरपोरेटपरस्त नीतियों का खामियाजा देश की जनता भुगत रही है। जोशीमठ के आंदोलन को कमजोर करने के लिए सरकार आंदोलन को ही माओवादियों का आंदोलन कहकर मुख्य मुद्दों से जनता का ध्यान भटका रही है। वहीं कम्युनिस्ट कार्यकर्ता बड़़ी ही सिद्दत के जनता की मांगों के साथ खड़े हैं। सरकार एवं भाजपा के आंदोलन को कमजोर करने के वक्तव्य के विरोध में अब जनता के विभिन्न हिस्से सड़कों पर हैं जिनमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी राजधानी देहरादून से लेकर राज्य के सभी जिला मुख्यालयों एवं तहसीलों पर निरंतर विरोध प्रदर्शन कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रही है ।


जोशीमठ, जो नीति पास का ही प्रमुख हिस्सा है इस संपूर्ण घाटी में पहली बार नहीं बल्कि कई दशकों से कम्युनिस्ट जनता के हकहकूकों की लड़ाई लड़ते आ रहे हैं ।
जहाँ तक कम्युनिस्ट एवं माओवादी विचार का सवाल है, उनका विचार शोषण से मुक्त समाज की स्थापना का है। फिलहाल, जोशीमठ के आंदोलकारियों को किसी विचार से जोड़ना ठीक नहीं है। जोशीमठ की संघर्षशील जनता अपने जीवन की रक्षा के लिए लड़ रही है और कम्युनिस्ट कार्यकर्ता उनके संघर्ष में कंधे से कनंधा मिलाकर चल रहे हैं । इसी बात को समझने की आवश्यकता है।
आज देश के शासकों, खासकर वर्तमान हुक्मरानों को पूर्ण विनाश से पहले यह समझ में नहीं आएगा कि पर्यावरणीय या सामाजिक मुद्दों को सुलझाए बिना अधांधुंध विकास से देश की प्रगति नहीं हो सकती। जोशीमठ ,पवित्र बद्रीनाथ मंदिर का द्वार होने के कारण खुद ही धार्मिक महत्व का शहर माना जाता है ,जो आज इस सदी की भंयकर त्रासदी से गुजर रहा है ।
उत्तराखंड में त्रासदी की लंबी श्रृंखला है, जो नाजुक पहाड़ियों में बेरोकटोक निर्माण और बढ़ते शहरीकरण के कारण आयी है। इन क्षेत्रों में आ रही आपदाओं के पीछे जलवायु परिवर्तन भी प्रमुख कारकों में से एक है। यह कहना उचित नहीं होगा कि जोशीमठ की यह आपदा केवल प्राकृतिक है, जबकि एनटीपीसी की तपोवन बिष्णुगाड़ परियोजना, नदी प्रवाह आधारित परियोजना, जिसका कारण भी जोशीमठ के धंसाव के लिए जिम्मेदार है। विगत कुछ दिनों पहले सत्तापक्ष अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए राष्ट्रीय डिजास्टर मैनेजमेंट के दिशा निर्देशों को कवच के रूप में इस्तेमाल कर चुकी है। यह उल्लेखनीय है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष जो कि 2019 में ओली में आयोजित गुप्ता बन्धुओं की शादी समारोह के कर्ताधर्ता थे और जिस पर 200 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, वह समारोह भी क्षेत्र के पर्यावरणीय नुकसान के लिए कम जिम्मेदार नहीं है।


कम्युनिस्टों का इस नीति घाटी में सतत संघर्षों का इतिहास रहा है। हकहकूकों की रक्षा के लिए चाहे रैणी गांव से शुरू चिपको आंदोलन हो या फिर चांई गांव को बचाने की लड़ाई हो, या फिर भीमकाय परियोजनाओं का विरोध हो, 2021 की आपदा के समय जनता के हर दु:ख दर्द में हिरावल भूमिका भी कम्युनिस्टों ने निभाई है। आज जहाँ भी जनपक्षीय संघर्ष है ,वहाँ कम्युनिस्ट ही बड़ी शिद्दत के साथ लड़ रहे हैं ।
आज उत्तराखंड बेहद अनियोजित तथा अनियंत्रित विकास के कारण भारी क्षति के कगार पर खड़ा है । जोशीमठ की त्रासदी एवं बद्रीनाथ मास्टर प्लान, केदारनाथ मेंं चल रहे भारी भरकम निर्माण चर्चाओं के केंद्र में हैं । बद्रीनाथ के मास्टर प्लान को ही धाम की मौलिकता के साथ ही नैसर्गिकता के खिलाफ भी माना जा रहा है। यहाँ हर तीसरे चौथे साल एक एवरलांच आते रहते हैं। 1978 में आये ऐवलांच ने बद्रीनाथ का पुराना बाजार ही तबाह कर दिया था ।


नीति पास में जन्मे चिपको आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ही क्षेत्र में जल ,जगंल और जमीन की रक्षा का संदेश था, जो रैणीगांव की महिलाओं ने गौरादेवी के नेतृत्व में दशकों पहले कर दिखाया था । उस जमाने में वाॅइस आफ अमेरिका, बीबीसी तथा रेडियो बीजिंग से चिपको आंदोलन की काफी चर्चा रही ।1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद भारत सरकार तेजी से इस क्षेत्र में सामरिक जरूरतों को देखते हुए जमीनों का अधिग्रहण कर रही थी, परिणामस्वरूप अनियोजित योजनाओं के खिलाफ चिपको आंदोलन की भूमिका की शुरूआत हुई । इसी दौरान नीतिपास के गांव तपोवन, गोविंदघाट तथा फूलों की घाटी में आने वाले गांवों, जो कि नंदादेवी के रास्ते पर पड़ते थे , जिनमें रैणीगांव,पोलना, म्यूंदार आदि में जनजागृति अभियान चलाया जाता रहा है, जिसकी अगुवाई कामरेड गोविंद सिंह रावत कर रहे थे। वे जोशीमठ के ब्लाक प्रमुख भी रहे। उसके बाद कामरेड बचनसिंह रावत उनके पद पर चुने गये ।
कामरेड गोविंद सिंह रावत ने राजस्व विभाग में पटवारी का पद त्याग दिया था, जिन्हें क्षेत्र का काफी कुछ ज्ञान होने के साथ ही वे चिपको आंदोलन के बारे में जानते थे । गौरादेवी ने, जो कि मूलरूप से देवदार के घने वृक्षों से आच्छादित रैणीगांव की थी, जंगली जड़ी-बूटियों को बचाने के लिए जब वन विभाग व ठेकेदार पेड़ों का कटान करने आया तब पेड़ों से चिपटकर पेड़ों की रक्षा की तथा चिपको आंदोलन का संदेश दुनिया को पहुंचाया। यदि हमारी व्यवस्था को संचालित करने वाले लोग इस आंदोलन से सबक लेते तो निश्चित तौर पर हम बार बार आ रही आपदाओं से रूबरू नहीं हो रहे होते ।


प्रकृति से छेड़छाड़ का यह पहला वाक्या नहीं है। फरवरी 2021 में जोशीमठ के पास ही धौलीगंगा -ऋषिगंगा में बन रहे बिजली परियोजनाओं को बाढ़ ने हटाकर सन्देश दिया था कि संवेदशनशील हिमालयी क्षेत्र में प्रकृति के साथ ज्यादती करोगे तो यही हाल होगा। इस हादसे में 200 से भी अधिक लोग जिंदा दफन हो गये थे। 2013 में केदारनाथ में अकल्पनीय बाढ़़ आयी। सरकार ने 825 किलोमीटर आलवेदर रोड निर्माण के नाम पर 40 हजार से भी अधिक पेड़ों का कटान तथा पहाड़ों को काट-काट कर पुराने भूस्खलनों को जगा दिया है। 2013 के बाद से 395 गांव खतरे में हैं तथा 73 अत्यधिक संवेदनशील हैं ।
उत्तराखंड में जनसरोकारों से जुड़े अनेक लोगों का मानना है कि जोशीमठ ही नहीं बल्कि पूरे हिमालयी राज्यों पर इस जनविरोधी विकास का दुष्प्रभाव पड़ रहा है। इसके विरुद्ध बड़ा जन आंदोलन चलाए जाने की आवश्यकता है। उनका मानना है कि “उत्तराखंड सहित सभी हिमालयी राज्यों के अनुभवी लोगों, देश के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों को आमंत्रित कर जनपक्षीय विकास की दिशा तय की जाए।
विशेषज्ञों का मानना है कि जोशीमठ में ढलान के साथ अब ज्यादा छेड़छाड़ न की जाए ,पानी निकासी एवं सीविरेज की समुचित व्यवस्था किये जाने की आवश्यकता है ।
यह बात सत्य साबित हुई है कि अंग्रेजों ने बसाया है और हमने उजाड़ा है। भूस्खलनों को रोकने के लिए अंग्रेजों ने खास किस्म की घास रोपी तथा चाय बागान लगाये और हम इन चाय बगानों की भी रक्षा नहीं कर पाये। इन तमाम अनदेखियों ने हमें बेघरबार कर दिया। सरकार एवं भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अपनी गल्तियों पर लीपापोती करने एवं अनर्गल बयानबाजी के बजाय जोशीमठ की मौजूदा तबाही से निपटने के लिए समुचित कदम उठाने चाहिए ।
आज बेहद नाजुक पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और दूसरी निर्माण गतिविधियों की एक सर्वसमावेशी समीक्षा आवश्यक है। जरूरत इस बात की है कि संवेदनशील विकास की दिशा में बेहद सोचा समझा रास्ता अख्तियार किया जाए,जो स्थानीय वाशिंंदों तथा वहाँ जाने वालों के लिए कम से कम नुकसानदेह हो।


आज फिर से जनपक्षधरता वाले लोगों को आगे आकर अपनी निर्णायक भूमिका निभानी चाहि़ए, जिसमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है –
जोशीमठ के लोगों का व्यवसाय और आर्थिकी तीर्थाटन पर निर्भर है, इसलिए जोशीमठ के निवासियों का इसी के अनुरूप तत्काल सुरक्षित स्थान पर बिस्थापन कर सरकार द्वारा उनकी नष्ट हुई चल-अचल संपत्ति का आकलन कर समुचित मुआवजा दिया जाए।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में चल रही जल विद्युत परियोजनाओं व सड़क चौड़ीकरण आदि परियोजनाओं को तत्काल प्रभाव से रोका जाए ।
उत्तराखंड राज्य का निर्माण पहाड़ी राज्य की प्रकृति के अनुरूप हो, विकास की नीतियों को बनाने में स्थानीय निवासियों की भागेदारी सुनिश्चित हो, अति केंद्रीयता के चलते तथाकथित विकास योजनाओं को थोपने की प्रक्रिया पर रोक लगे। यहाँ हरेक निर्माण पहाड़ की क्षमता के अनुरूप हो, जिसके लिए सत्ता का विकेंद्रीकरण जरूरी है।
आल वेदर रोड के निर्माण के लिए पहाड़ों का कटाव, मलवे का निस्तारण, रेल परियोजनाओं के लिए सुंरगों का निर्माण और विस्फोट हिमालय की पारिस्थितिकी के विपरीत है। इससे होने वाले प्रभाव का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन किया जाना चाहिए।
तीर्थाटन पर आने वाले यात्रियों को यहाँ की क्षमता के अनुरूप नियंत्रित करने के साथ ही धार्मिक पयर्टन के लिए निजी वाहनों का आवागमन सीमित कर सार्वजनिक यातायात की व्यवस्था हो। हैली सेवाओं से पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभाव का आंकलन हो ।
उत्तराखंड के विकास की जनपक्षीय नीति निर्धारण के लिए भूवैज्ञानिकों, पर्यावरणीय विशेषज्ञों व जनप्रतिनिधियों को शामिल करते हुए हाईपावर कमेटी का गठन किया जाए।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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