मुद्दा: बुनियादी ढांचे की कमी की वजह से महिलाएं ज्यादा असुरक्षित

मुद्दा: बुनियादी ढांचे की कमी की वजह से महिलाएं ज्यादा असुरक्षित
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देश में प्रतिदिन औसतन 86 बलात्कार (रेप) होते हैं। यह संख्या वह है, जो पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज की जाती है। हर दिन होने वाले ढेरों बलात्कारों या बलात्कार के प्रयासों, हिंसक छेड़छाड़ और अभद्रता की संख्या का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
राष्ट्रीय वार्षिक महिला सुरक्षा रिपोर्ट व सूचकांक-2025 के अनुसार, दिल्ली समेत पटना, जयपुर, कोलकाता, श्रीनगर, रांची व फरीदाबाद महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित हैं, जबकि मुंबई, कोहिमा, भुवनेश्वर, विशाखापत्तनम व गंगटोक सबसे सुरक्षित हैं। कोहिमा व अन्य सुरक्षित शहरों में महिलाओं को ज्यादा समानता, नागरिक भागीदारी, बेहतर पुलिस व्यवस्था व अनुकूल बुनियादी ढांचा बताया जा रहा है। यह सर्वेक्षण देश के इकतीस शहरों की बारह हजार 770 महिलाओं पर किया गया।
दस में से छह महिलाओं ने खुद को अपने शहर में सुरक्षित बताया, जबकि 40 प्रतिशत ने ज्यादा सुरक्षित नहीं या असुरक्षित माना। करीब 91 प्रतिशत महिलाएं कार्यस्थल पर खुद को सुरक्षित बता रही हैं। 7 प्रतिशत महिलाएं मानती हैं कि सार्वजनिक स्थल पर उन्होंने बीते वर्ष उत्पीड़न झेला। हालांकि, हर तीन में से दो महिलाएं उत्पीड़न की शिकायत नहीं करतीं। 29 प्रतिशत सार्वजनिक परिवहन में और 38 प्रतिशत पड़ोस में उत्पीड़न का शिकार होती हैं। जिन शहरों में बेहतर बुनियादी ढांचे की कमी है, वहां महिलाएं ज्यादा असुरक्षित हैं।
यह स्वीकार करना होगा कि असुरक्षित महसूस करने वाली जगहों के नागरिकों की शिक्षा, सोच व संस्थागत जवाबदेही का कमजोर होना प्रमुख कारण हैं। हालांकि, सवा अरब की आबादी में पौने तेरह हजार महिलाओं पर अध्ययन नाममात्र ही कहा जाएगा। ऐसे अध्ययनों में कुछ लाख नागरिकों को शामिल किया जाना चाहिए। रस्मी तौर पर किए गए सर्वेक्षण समाज या देश के लिए हितकारी नहीं कहे जा सकते। इनके निष्कर्षों के अनुसार कदम उठाए जाने चाहिए।
राज्य सरकारों, महिला आयोग जैसी संस्थाओं पर कड़ाई रहनी चाहिए। पितृसत्तात्मक बर्ताव, स्त्री उपेक्षा व लैंगिक विभेद के प्रति नागरिकों को जागरूक करना होगा। आंकड़ों को प्रकाशित/प्रसारित करने भर की औपचारिकता से सुधार संभव नहीं हैं। जमीनी स्तर पर भी गंभीरतापूर्वक काम होना चाहिए। बलात्कार, छेड़छाड़, व्यभिचार को असुरक्षा की स्थिति से अलग नहीं किया जा सकता। सोच और रवैया, दोनों बदलने के साथ ही संबंधित विभागों, पुलिस और प्रशासन को जिम्मेदार बनाना भी जरूरी है।

 

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