आयोजन: हरीश रावत की ‘काफल पार्टी’ : उत्तराखंडियत को जीवंत बनाए रखने की कोशिश
रविवार को पूर्व मुख्यमंत्री आदरणीय हरीश रावत जी द्वारा आयोजित काफ़ल पार्टी में सम्मिलित हुआ l
इस आयोजन की सबसे बड़ी खूबसूरती यह रही कि इसमें पत्रकार, पूर्व सैनिक, छात्र, युवा, सामाजिक कार्यकर्ता – हर वर्ग के लोग शामिल हुए।

यह आयोजन किसी पार्टी का कार्यक्रम न होकर यह जनता के मेल मिलाप का त्योहार था, जिसमें भाजपा छोड़कर अन्य सभी दलों के कार्यकर्ता भी शामिल हुए l यह मिलन कार्यक्रम ये बताता है कि हरीश रावत जी का संवाद दलगत राजनीति से ऊपर उठकर है।
कार्यक्रम की शुरुआत सिंदूर ऑपरेशन की सफलता पर सशस्त्र बलों के गौरव सेनानियों का सम्मान कर एक स्पष्ट संदेश दिया गया कि देश की सुरक्षा में लगे वीरों को हम केवल युद्ध के समय नहीं, बल्कि हर क्षण स्मरण में रखें।यही सच्ची देशभक्ति हैl
काफल पार्टी के अवसर पर हरीश रावत जी ने कहा कि कुछ लोगों के लिये “वोकल फॉर लोकल “ नारा होगा लेकिन मेरे लिए नारा नहीं, मिशन है l वास्तव में उन्होंने इसे समय समय पर सिद्ध भी किया l
आप उनकी कई नीतियों से असहमत हो सकते हैं लेकिन उत्तराखण्ड की लोकसंस्कृति, लोकपर्व एवं लोक व्यंजनों की समृद्धि व संरक्षण के लिए उनके योगदान को आप नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते l
जब वे मुख्यमंत्री थे, तब वोकल फॉर लोकल’ को उन्होंने सरकारी नीतियों में ही नहीं, जीवन के त्योहारों में भी शामिल किया।
हरेला, इगास, घी संक्रांति, फूलदेई ये पर्व उन्होंने सरकारी नोटिस के साथ ही जनमानस की स्मृति में दोबारा जीवंत किए। वे केवल पर्व नहीं मनाते बल्कि वे हर व्यंजन, हर परिधान, हर लोकगीत को ‘लोकल स्वाभिमान’ का हिस्सा बना देते हैं।

मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद हर साल हरीश रावत जी काफ़ल पार्टी, ककड़ी पार्टी, भट के डुबके, झंगोरे की खीर के साथ साथ लोकल फलों की पार्टी करते हैं। उनके लिए पहाड़ी खाना, झंगोरे की खीर, मंडुए की रोटी, भांग की चटनी या काफ़ल केवल व्यंजन नहीं हैं, बल्कि संस्कृति के वाहक हैं। ककड़ी पार्टी, माल्टा पार्टी, काफ़ल पार्टी जैसे आयोजनों के माध्यम से वे सांस्कृतिक मुहिम चलाते हैं l
सोशल मीडिया में उनकी हर पोस्ट, हर तस्वीर, हर भोज केवल भोजन नहीं, एक सांस्कृतिक आंदोलन है। जहाँ दूसरों के लिए सोशल मीडिया प्रचार का साधन है, हरीश रावत जी के लिए यह उत्तराखंड की आत्मा को दुनिया के सामने रखने का माध्यम है।
रविवार की काफ़ल पार्टी सिर्फ एक आयोजन नहीं थी यह एक सन्देश था कि उत्तराखण्ड की असली शक्ति लोकसंस्कृति, लोकभाषा और लोकमानस में बसती है।
हरीश रावत जी जैसे नेता इस दौर में दुर्लभ हैं, जो राजनीति को संस्कृति से जोड़कर जनतंत्र को जीवंत बनाते हैं।
(रघुबीर सिंह बिष्ट की फेसबुक वाल से साभार)
