मुद्दा: सेवा क्षेत्र में केंद्रीय भूमिका के बावजूद देश में रोजगार की स्थिति खराब

मुद्दा: सेवा क्षेत्र में केंद्रीय भूमिका के बावजूद देश में रोजगार की स्थिति खराब
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भारत में सेवा क्षेत्र की केंद्रीय भूमिका है, लेकिन इसके भीतर अधिकांश कर्मियों को रोजगार सुरक्षा या सामाजिक संरक्षण हासिल नहीं है। अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा योगदान के बावजूद सेवा क्षेत्र के कर्मी निम्न वेतन जाल में फंसे हुए हैं।
नीति आयोग ने समस्या पर रोशनी डाली है, लेकिन ठोस समाधान सुझाने में विफल रहा है। समस्या है सेवा क्षेत्र में रोजगार की खराब स्थिति। आयोग ने कहा है- ‘भारतीय आर्थिक ढांचे में सेवा क्षेत्र केंद्रीय स्थल पर है, लेकिन इसके भीतर अनौपचारिक क्षेत्र का हिस्सा बेहद बड़ा है, जहां अधिकांश कर्मियों को रोजगार सुरक्षा या सामाजिक संरक्षण हासिल नहीं है।’ अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा योगदान के बावजूद सेवा क्षेत्र के कर्मी निम्न वेतन जाल में फंसे हुए हैं। सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था में योगदान 55 फीसदी से अधिक है, मगर यह कुल रोजगार में इसका हिस्सा एक तिहाई ही है- और उसमें भी ज्यादातर कम वेतन वाली और अनौपचारिक नौकरियां हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2023-24 के अंत तक सेवा क्षेत्र में 18 करोड़ 80 लाख लोगों को काम मिला हुआ था। मगर रोजगार का यह क्षेत्र ‘गहरे ढांचागत विभाजनÓ का शिकार है।
एक तरफ सूचना तकनीक, वित्त, स्वास्थ्य, और पेशेवर सेवाओं में उच्चस्तरीय रोजगार हैं, तो दूसरी ओर अनौपचारिक क्षेत्र है जिसके भीतर 55.7 प्रतिशत कर्मी स्वरोजगार श्रेणी में आते हैं। बिना सामाजिक सुरक्षा वाले वेतनभोगी कर्मियों की संख्या 29 फीसदी है। 9.2 प्रतिशत लोग घरेलू कामकाज में सहायक की भूमिका निभा रहे हैं, जबकि 6.2 प्रतिशत दिहाड़ी मजदूर हैं। स्पष्ट है, सेवा क्षेत्र ज्यादातर कर्मियों को किसी तरह जीने का सहारा भर दे रहा है। लेकिन उससे ऐसे उपभोक्ता तैयार नहीं हो सकते, जो बाजार का विस्तार करें।
तो आयोग ने कहा है कि सेवा क्षेत्र के लिए नए नीतिगत नजरिए की जरूरत है, जिसका मकसद इस क्षेत्र को औपचारिक रूप देना हो। मगर ऐसा कह भर देने से तो नहीं होगा! महिलाओं और युवाओं में कौशल विकसित करने, डिजिटल एवं ग्रीन अर्थव्यवस्था की तकनीक में निवेश करते हुए उसके लिए कर्मी तैयार करने, और संतुलित क्षेत्रीय विकास की नीतियां लागू करने जैसे नीति आयोग के सुझाव गौरतलब हैं। मगर मुद्दा यह है कि ये काम कौन करेगा? क्या सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी निजी क्षेत्र पर डालने के लिए वैधानिक उपायों पर सख्ती से अमल के लिए सरकार तैयार है? क्या इसके लिए सरकार अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप की भूमिका अपनाएगी?

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