मुद्दा : भारत के नागरिकों बचत की घटती क्षमता से बढ़ता कर्ज का बोझ
साल 2019 के बाद से भारतीय परिवारों की औसत संपत्ति 48 प्रतिशत बढ़ी है, लेकिन इसी दौरान उपर कर्ज का बोझ 102 फीसदी बढ़ गया है। इसके पहले भारतीय परिवारों की बचत में भारी गिरावट के तथ्य सामने आ चुके हैं।
परिवारों में बचत की घटी क्षमता के कारण उन पर कर्ज बढ़ने और उनकी संपत्ति घटने के रुझान ने अब और ठोस रूप ले लिया है। कोरोना काल के बाद से ही यह प्रवृत्ति उजागर होने लगा थी, जो लगातार गंभीर होती जा रही है। भारतीय रिजर्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट ने इसी बात की पुष्टि की है। इसमें बताया गया है कि 2019 के बाद से भारतीय परिवारों की औसत संपत्ति 48 प्रतिशत बढ़ी है, लेकिन इसी दौरान उपर कर्ज का बोझ 102 फीसदी बढ़ गया है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तुलना में देखें, तो 2019-20 से 2023-24 तक हर साल भारतीय परिवारों की वित्तीय संपत्ति जीडीपी के 12 प्रतिशत के बराबर रही। लेकिन 2024-25 में यह घट कर 10.8 फीसदी हो गई।
जबकि 2019 में जहां परिवारों की वित्तीय देनदारी जहां जीडीपी के 3.9 प्रतिशत के बराबर थी, वह 2024-25 में 4.7 फीसदी तक पहुंच गई। इसके पहले रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से ही यह जाहिर हुआ था कि भारतीय परिवारों की बचत में कोरोना काल के बाद भारी गिरावट आई है। फिर बचत के निवेश में उनकी प्राथमिकताएं भी बदली हैं। हालांकि बैंकों में बचत को जमा कराने का चलन अभी भी है, मगर पिछले कुछ वर्षों के दौरान मुचुअल फंड्स औसत परिवारों की खास पसंद बने हैं। बहरहाल, खास पहलू बचत में गिरावट है, जिस वजह से पर्सनल या अन्य ऋण लेकर जरूरी खर्चों को पूरा करने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है।
संपत्ति में गिरावट का संबंध भी बचत से है। एक तर्क यह हो सकता है कि बचत में कमी उपभोग की बढ़ी प्रवृत्ति के कारण आई है। मगर यह आंशिक सच ही है। जिस दौर में तमाम दूसरे आंकड़े आमदनी गतिरुद्ध होने अथवा ऊंची मुद्रास्फीति के दौर में वास्तिवक आय में गिरावट का संकेत देते रहे हैं, और बाजार में कमजोर मांग को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं, अधिक उपभोग की बात गले नहीं उतर सकती। बल्कि गैर-बराबरी बढ़ा रही अर्थव्यवस्था इस स्थिति के लिए अधिक जिम्मेदार मालूम पड़ती है, जिसमें आबादी के विशाल हिस्से के लिए रोजमर्रा की आर्थिक चुनौतियां गंभीर हो गई हैँ।

