शिक्षा: जीवन में काम आने वाले गणित से रिश्ता भी न के बराबर

शिक्षा: जीवन में काम आने वाले गणित से रिश्ता भी न के बराबर
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मारे यहां स्कूलों में जिन विषयों को जटिल और उबाऊ माना जाता है, उनमें गणित भी एक है।  पर अध्ययनकर्ताओं की एक टीम ने हालिया अध्ययन में यह पाया कि स्कूलों में जो गणित सिखाया जाता है, उसका दैनंदिन जीवन में काम आने वाले गणित से रिश्ता भी न के बराबर है।  अध्यनकर्ताओं की इस टीम में अर्थशास्त्र का नोबेल पा चुके इथर डुफ्लो और अभिजीत बनर्जी भी थे।  इस दंपति ने एमआइटी में जमील अब्दुल लतीफ पॉवर्टी एक्शन लैब की स्थापना की है, जिसने देखते ही देखते विकासमूलक अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अपनी खास पहचान बना ली है।
अध्ययनकर्ता यह जानना चाहते थे कि क्या सड़कों का गणित कक्षाओं में और कक्षाओं का गणित सड़कों पर भी उतना ही कारगर है।  इसके लिए उन्होंने कोलकाता में काम करने वाले 201 बच्चों से जोड़, घटाव और गुणा के सवाल पूछे, जिसमें वे सफल रहे।  पर यही बच्चे किताबों के मामूली सवाल हल नहीं कर पाये।  फिर दिल्ली में 400 कामगार बच्चों से रोजमर्रा के गणितीय सवाल पूछे गये, जिसमें वे सफल रहे, पर किताबी गणित में वे भी फिसड्डी पाये गये।  फिर दिल्ली के 17 स्कूलों के 200 बच्चों को किताबी सवाल दिये गये, तो कागज, पेंसिल की मदद से 96 फीसदी छात्र उसमें सफल रहे, पर व्यावहारिक गणित में सिर्फ 60 फीसदी छात्र सफल रहे।  आखिरी अध्ययन में सड़कों और स्कूलों के 200 छात्रों को शामिल किया गया।  इसमें व्यावहारिक गणित में 80 फीसदी कामगार बच्चे और मात्र 10 प्रतिशत स्कूली बच्चे सफल रहे।  पर इन्हीं बच्चों को जब गणित के सवाल दिये गये, तो 59 फीसदी स्कूली बच्चे और 45 प्रतिशत कामगार बच्चे सफल हुए।
अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि काम करने वाले बच्चे जोड़, घटाव और गुणा के जटिल प्रश्न तो चुटकियों में हल कर सकते हैं, पर गणित की किताब के मामूली सवाल वे हल नहीं कर सकते।  जबकि इनमें से अनेक बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं या इन्होंने सातवीं-आठवीं तक पढ़ाई की है।  दूसरी ओर, गणित में अच्छे अंक लाने वाले छात्र वे सवाल हल नहीं कर सकते, जिनकी जरूरत जीवन में रोज पड़ती है।  इस अध्ययन का निष्कर्ष स्कूली गणित को कमतर बताना नहीं है, न ही कामगार बच्चों के गणितीय ज्ञान का महिमामंडन करना है।  अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि कामगार बच्चे अगर स्कूली गणित को गंभीरता से लें और अपनी पढ़ाई पूरी करें तथा स्कूली छात्रों को व्यावहारिक गणित के बारे में भी सिखाया जाये, तो फिलहाल दिख रही खाई भर सकती है।

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