नज़रिया: समर्थन मूल्य बढ़ाना ही काफी नहीं, खरीद भी होनी चाहिए

अशोक शर्मा
केंद्र सरकार ने हाल ही में 14 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि का जो फैसला किया है, उसे किसानों के लिए राहत के रूप में देखा जा सकता है। देश के किसानों के लिए पिछला कुछ समय अच्छा नहीं रहा है। इसलिए उन्हें हर तरह की मदद की जरूरत है। किसानों का उत्साह बना रहना चाहिए। कृषि एकमात्र ऐसा पेशा है, जो पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर है। प्रकृति रूठ गई तो समझो किसान की किस्मत रूठ गई। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, आंधी-तूफान, पाला व सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के जितने भी रूप हैं, उन पर किसी का भी बस नहीं है। मौसम साथ न दे तो किसान की मेहनत और उसके द्वारा लगाया गया धन बर्बाद होते देर नहीं लगती।
किसानों के लिए पिछले कुछ समय की प्रतिकूलता प्रकृति से संबद्ध तो रही है, कुछ कारण सरकारों से उनकी उम्मीदों से भी जुड़े हैं। देश के कुछ हिस्सों में किसानों का लम्बा आंदोलन भी इन्हीं उम्मीदों से जुड़ा रहा है। पैदावार का उचित दाम न मिलने या फसल की बर्बादी और कर्ज से घिर जाने पर आत्महत्या करने को मजबूर किसानों की डरावनी तस्वीरें भी सामने आती रही है। खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के बाद उम्मीद की जा सकती है कि इससे किसानों को राहत मिलेगी। इस बढ़ोतरी से किसानों की झोली में दो लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि आने की बात कही जा रही है। यह बड़ी रकम है, जो किसानों को संबल देने में सक्षम है।
यह बात दूसरी है कि कृषि क्षेत्र से ऐसी आवाजें भी आ रही हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में जो वृद्धि की गई है वह ‘ऊंट के मुंह में जीरे’ के बराबर है और इससे किसानों को खास लाभ नहीं होगा। सरकार का कहना है कि उसने खुले दिल से मदद की है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में इस बार की वृद्धि पिछले दस वर्ष में सर्वाधिक है। हालांकि देश के अन्नदाता को जितनी राहत दी जाए उतनी ही कम है क्योंकि हाड़-तोड़ मेहनत के बाद ही खेतों से पैदावार निकल पाती है। यह भी नहीं मानना चाहिए कि सरकार का काम यहां ही खत्म हो गया है। असल में जिन राज्यों में किसान की पूरी फसल की सरकारी खरीद हो जाती है, उन राज्यों के किसानों को अधिकतम लाभ मिलता है, जबकि कम खरीद करने वाले राज्यों के किसानों को इसका अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता।
यह भी उजागर तथ्य है कि गेहूं जैसी कई उपजों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद कम हुई है। सरकार खरीद कम करे या फिर नहीं के बराबर करे, व्यापारियों से समर्थन मूल्य जितना भी दाम नहीं मिले तो फिर किसान क्या करेगा? यह बुनियादी सवाल कृषक समुदाय लगातार उठाता रहा है। इसलिए समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी के कानून की मांग भी उठ रही है। सरकार को इस समस्या का भी समाधान निकालना चाहिए। इसके साथ ही किसानों की दूसरी समस्याओं पर ध्यान देना होगा। जैसे कृषि बीमा में फसल मुआवजे की विसंगतियां और इसके त्वरित भुगतान की राह में अवरोध भी दूर करने होंगे।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
