कविता: ‘यह युद्ध करते हुए युद्ध सीखने का समय है..’

मनीष आज़ाद

यह किताबों को कंठस्थ करने का समय है
क्योंकि किताबों को जलाने का आदेश
कभी भी आ सकता है
तानाशाह को पता है
भविष्य जलाने के लिए किताबें जलाना ज़रूरी है
यह गीतों को याद रखने
और उनके सामूहिक गान का समय है
क्योंकि गीत ही वह पुकार है
जिसमें हम भविष्य का आह्वान करते हैं
तानाशाह यह जानता है
इसलिए वह गीतों को हमारी स्मृतियों से
खुरच देना चाहता है
यह प्रेम करने का समय है
क्योंकि प्रेम करना हमेशा से
रवायतों के ख़िलाफ़ विद्रोह रहा है
इसलिए हर तानाशाह प्रेम से ख़ौफ़ खाता है
यह समाचार को सामने से नहीं,
पीछे से देखने का वक़्त है
क्योंकि तानाशाह अब समाचारों पर प्रतिबन्ध नहीं लगाता,
बल्कि उनमें तेज़ाब भरवाता है
यह प्रश्नों को बचाने, गढ़ने और
उन्हें उछालने का समय है
क्योंकि तानाशाह जानता है
कि ये प्रश्न उसके उत्तरों की महागाथा की उड़ा सकते हैं धज्जियां
यह युद्ध करते हुए, युद्ध सीखने का वक़्त है
क्योंकि तानाशाह जानता है कि
वह तभी तक सुरक्षित है
जब तक युद्ध पर उसका एकाधिकार है !
(सोशल मीडिया पोस्ट)