नज़रिया: लोग कितना समझ सकते हैं ‘तुम्हीं बांटते हो तुम्हीं काटते हो’ की सच्चाई

नज़रिया: लोग कितना समझ सकते हैं ‘तुम्हीं बांटते हो तुम्हीं काटते हो’ की सच्चाई
Spread the love

 

शकील अख़्तर

ह ब्लैकमेलिंग है या भयादोहन? या भारत के लोगों को भयाकुल बनाना?
लगता है उससे भी आगे की बात है। ब्लैकमेलिंग में जब आपके खिलाफ कुछ होता है तो उसका फायदा उठाया जाता है। यहां तो काल्पनिक डर दिखाकर उसका फायदा उठाने की कोशिश है और डर पूरे देश को, समाज को।
और किस खतरनाक स्तर का बेटी छीन लेंगे! भैंस और मंगलसूत्र से अब बेटियों तक आ गए। यह केवल डर दिखाना नहीं है। बल्कि उससे आगे जाकर यह कहना है कि मुझे वोट नहीं दिया तो तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। इसी की कम्पटिशन में लाया गया है ‘बटेंगे तो कटेंगे!’
ज्यादा खतरनाक, अखिलेश यादव के शब्दों में निकृष्टतम कौन सा है कहना मुश्किल! बेटी छीन लेने से ज्यादा अपमानजनक, बेबसी बताने वाली बात और क्या होगी? मगर जब मुकाबला गिरने का हो तो फिर आप कुछ नहीं कह सकते। कटना काटना उससे और आगे की बात है या बराबर या बेटी छीनने से कमजोर रह गई आप खुद फैसला करें।


अगर फैसला कर पाने की अक्ल, विवेक रह गया हो तो! नहीं तो जैसे पहले दस साल नफरत पैदा करके वोट लिए गए वैसे ही अब डर पैदा करके लिए जाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी एक डर दिखाएंगे तो मुख्यमंत्री योगी दूसरा।
हो सकता है दोनों में होड़ हो कि कौन ज्यादा डरा सकता है?  देश में भय का माहौल कौन ज्यादा फैला सकता है?  यही आधार हो देश पर शासन करने का।
एक डरा हुआ देश बनाने की कोशिश! क्या भारत बन जाएगा? एक नया प्रयोग है।
देश को डरा कर शासन करने की कोशिश कभी किसी ने नहीं की। अंग्रेजों ने भी नहीं कहा कि अगर हम चले जाएंगे तो तुम्हारी बेटियां छिन जाएंगी। तुम कटोगे। अंग्रेजो ने कहा कि तुम कानून व्यवस्था के तहत शासन नहीं करोगे। तो सत्तर साल बाद यह जरूर सच साबित हो रहा है। चर्चिल ने कहा था भारत की आजादी का विरोध करते हुए कि वहां के शासक लोगों को बांटेंगे। इंग्लेंड के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल को शक था कि भारत में सत्ता बहुत खराब शब्द इस्तेमाल किया था उन्होंने दुष्ट हाथों में चली जाएगी। सत्ता के लिए वे कुछ भी कर गुजरेंगे। सत्तर साल तक हमारे नेताओं ने चर्चिल को गलत साबित करके रखा। मगर आज?
जिन के पास शासन है उन्हीं में से एक कह रहे हैं कि बेटी छिन जाएगी और दूसरे कटने कटाने का डर दिखा रहे हैं। आजाद भारत में तो किसी ने यह कभी नहीं कहा कि हमारी सरकार नहीं रहेगी तो ऐसा हो जाएगा। 1947 जी हां यही साल था जब भारत आजाद हुआ। नहीं तो कहा तो यह जाने लगा है कि भारत 2014 में आजाद हुआ। और प्रधानमंत्री मोदी ने तो खुद यहां तक कह दिया कि 2014 से पहले भारत में पैदा होना शर्म की बात थी। आज जो दस सवा दस साल तक के बच्चे हैं वे ही सिर्फ गर्व कर सकते हैं। बाकी उनके मां बाप सब शर्म को जीवन भर झेलने वाले हैं।
तो अब मुकाबला डर से है। एक झूठ कि भेड़िया आया!  भेड़िया आ जाएगा! पुरानी कहानी है। और अंत एक सही संदेश के साथ कि जब वास्तविक समस्या आई तो उसका शिकार गांव नहीं वह झूठ डराने वाला ही बना।
क्या रोज किसी देश को डरा कर, समाज का आत्मसम्मान छीन कर आप उम्मीद कर सकते हैं कि खुदा न खास्ता कोई वास्तविक संकट आ गया तो लोगों में इतनी हिम्मत बचेगी कि वह उस असल मुसीबत के सामने खड़े हो सकें?
1971 में बांग्ला देश के युद्ध के समय पूरा देश एक साथ खड़ा हुआ था। और वह भारत के इतिहास का सबसे गौरवशाली समय था। आज वे गौरवशाली तो कुछ बताते नहीं हैं शर्म की बात जरूर बताते हैं कि आप 2014 से पहले पैदा हो गए! पैदा होने पर किसका अख्तियार है? शायद उनका है क्योंकि वे कहते हैं कि मैं तुम लोगों की तरह पैदा नहीं हुआ। मतलब अवतरित हुआ हूं। नान बायलोजिकल हूं।
तो देश की हिम्मत तोड़ी जा रही है। किसके लिए?  वोट के लिए। यह जो आरोप दूसरों पर लगाते हैं मतलब वही काम ये करते हैं और आरोप दूसरे पर। वोट बैंक दलित, पिछड़े, मुसलमान सब के लिए कहा। खुद की राजनीति को वोट की राजनीति से अलग बताया मगर आज सब कुछ वोट के लिए हैं। पहले नफरत और अब डर।
हरियाणा के चुनाव जहां खुद बीजेपी हार मान चुकी थी उसके बाद मुख्य चुनाव आयुक्त न्याय मांगने वालों पर ही उल्टा आरोप लगाने लगे। कांग्रेस के आरोपों की कोई जांच नहीं। जबकि कांग्रेस ने स्पेसिकफिकली 20 विधानसभा क्षेत्रों के नाम देते हुए वहां ईवीएम के बदले जाने के दस्तावेज पेश करते हुए शिकायत दी थी। मतदान के बाद 99 प्रतिशत तक ईवीएम चार्ज रहने के सबूत दिए थे। मगर राजीव कुमार प्रेस कान्फ्रेंस करके कहते हैं कि कांग्रेस गलत आरोप लगाने से बाज आए। ऐसा पुलिस कहती है।
जब उसे आरोपी को बचाना होता है, पीड़ित पर ही उल्टे सवाल दागना शुरू कर देती। चोरी हो गई। चोर ढूंढ़ने के बदले, अपनी गश्त व्यवस्था की समीक्षा करने के बदले वह इसी पर लगी रहती है कि जरूर तुम्हारे घर की कोई खिड़की खुली रह गई होगी। खिड़की नहीं तो रोशनदान। इतना जलील कर दो कि अगली बार कोई चोरी की रिपोर्ट करवाने ही नहीं आए।
24 घंटे में दो बार महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री रहे उद्धव ठाकरे की तलाशी? इससे पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष खरगे के हैलिकाप्टर और राहुल गांधी के हैलिकाप्टर की तलाशी?  सत्ता पक्ष ने कितना पैसा खर्च किया है यह उसे नहीं दिखा। कांग्रेस के बैंक अकाउंट सीज कर दिए यह उसे नहीं दिखा। बच्चे बच्चे को मालूम है कि झारखंड और महाराष्ट्र में किसने पैसा पानी की तरह बहाया है। पिछले दस साल में हर चुनाव में यह सबने देखा। मगर एक गोदी मीडिया और दूसरे चुनाव आयोग को यह कभी भी नहीं दिखा।
सुप्रीम कोर्ट तक को एक बार दिख गया और चीफ जस्टिस चन्द्रचूड़ उसी एक बात का राग अलापे जा रहे हैं कि हम पर न्याय न करने निष्पक्ष न होने का शक किया जा रहा है मगर देखो हमने चुनावी बांड पर कैसी टिप्पणी की। पता नहीं किसी ने पूछा या नहीं पूछा कि चुनावी बांड के जरिए आया हुआ वह पैसा आपने बीजेपी से जप्त करवाया क्या? क्या हुआ उस फैसले में? जिन्हें पैसा देने के बदले सरकारी फायदे मिले वह वापस हुए क्या? चंदा देकर ठेके लेने वालों और देने वालों के खिलाफ मुकदमे चले क्या? हुआ क्या?
मगर खैर एक बात तो मिली चीफ जस्टिस को कहने की। मुख्य चुनाव आयुक्त  के पास क्या एक बात भी ऐसी है कि वे कह सकें कि देखो यह तो हमने किया। या नहीं किया। या नहीं होने दिया। वह तो ईवीएम के जरिए खुद करवा रहे हैं। तो देश की हिम्मत तोड़ी जा रही है। किसके लिए?  वोट के लिए। यह जो आरोप दूसरों पर लगाते हैं मतलब वही काम ये करते हैं। और आरोप दूसरे पर। वोट बैंक दलित, पिछड़े, मुसलमान सब के लिए कहा। खुद की राजनीति को वोट की राजनीति से अलग बताया मगर आज सब कुछ वोट के लिए हैं। पहले नफरत और अब डर।
खैर एक बात तो मिली चीफ जस्टिस को कहने की। मुख्य चुनाव आयुक्त  के पास क्या एक बात भी ऐसी है कि वे कह सकें कि देखो यह तो हमने किया। या नहीं किया। या नहीं होने दिया। वह तो ईवीएम के जरिए खुद करवा रहे हैं।
तो इन परिस्थितियों में क्या होता है, देखना पड़ेगा?  जनता को बेरोजगार, महंगाई की मार से परेशान करके अब वह और डरा रहे हैं कि जिन्दा हो। बेटी घर में है। वोट दे दो। नहीं तो कटना बेटी छिनना सब होगा।
देखते हैं हिम्मत कहां से आती है। राहुल का डरो मत का आव्हान कितने साहस की वापसी करता है। अखिलेश के जुड़ोगे तो जीतोगे को जनता कितना समझती है। और खरगे की तुम्हीं बांटते हो तुम्हीं काटते हो की सच्चाई लोगों के कितना समझ में आती है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

Parvatanchal

error: कॉपी नहीं शेयर कीजिए!