आकलन: अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां हिंदुओं पर सर्वाधिक भारी
हरिशंकर व्यास
दुनिया के अधिकतर सभ्य, विकसित और लोकतांत्रिक देशों में जिस एक कौम को सबसे ज्यादा सम्मान और प्रेम के साथ स्वीकार किया जा रहा था, जिसे कोई दूसरी कौम अपने लिए खतरे की तरह नहीं देखती थी वह हिंदू कौम थी।
लेकिन पिछले 10 साल में क्या हुआ है? पूरी दुनिया में हिंदुओं के प्रति घृणा बढ़ी है। उनके खिलाफ हेट स्पीच बढ़े हैं और उनको निशान बनाने की घटनाएं बढ़ी हैं।
अमेरिका में, जहां लगभग 45 लाख भारतीय आबादी बताई जाती है, और जिसमें अधिकांश हिंदू हैं वहां भी हिंदुओं का जीवन मुश्किल हुआ है। भारत में चल रही जातीय व धार्मिक बहस वहां तक जा पहुंची है।
पिछले साल कैलिफोर्निया स्टेट में जातिगत भेदभाव को रोकने का विधेयक लाया गया था। यह विशुद्ध रूप से भारत को निशाना बनाने वाला विधेयक था। इसकी शुरुआत अमेरिका की टेक्नोलॉजी कंपनी सिस्को और उसके दो इंजीनियरों के खिलाफ एक भारतीय नागरिक के साथ जाति के आधार पर भेदभाव करने के मामले से हुई थी।
इस मुकदमे के आधार पर जातिगत भेदभाव रोकने का बिल आया। इसके खिलाफ कैलिफोर्निया के हिंदू समूहों ने प्रदर्शन भी किया। इसके बावजूद राज्य विधानसभा से यह बिल पास हो गया। बाद में कोलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूसम ने इसे वीटो करके रोक दिया।
हालांकि इसके बावजूद पूरे अमेरिका में इसकी व्यापक कवरेज हुई, जिसमें हिंदू समाज निशाने पर था। चौतरफा बदनामी हुई। भले कारोबारी स्तर पर हिंदुओं की पूछ बढ़ी है लेकिन एक समाज और संस्कृति के तौर पर उनकी बदनामी हुई है।
चाहे जाति का मामला हो, भारत में धर्म के आधार पर होने वाले विभाजन का मामला हो या खालिस्तान का मामला हो हर बार अमेरिका में हिंदू निशाने पर आए। कट्टरपंथी गोरों के साथ साथ अपने ही देश के सिख और दूसरे कई देशों के मुस्लिम उनको दुश्मन की तरह देखने लगे।
आने वाले दिनों में हिंदुओं की मुश्किल और बढऩे वाली है क्योंकि राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप जो नीतिगत फैसले करने वाले हैं उनमें से कई फैसलों का शिकार हिंदू होंगे। ट्रंप नागरिकता देने वाले कानून में बदलाव करेंगे, और केवल ग्रीन कार्डधारक के बच्चों को ही जन्म से तब नागरिकता मिलेगी।
इसका नुकसान 10 लाख भारतीयों को होने वाला है। अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए ट्रंप सख्त कानून ला रहे हैं तो पहले से रह रहे अवैध प्रवासियों को निकालने के लिए दो सौ साल से ज्यादा पुराने कानून का सहारा लेंगे।
इस कानून के तहत सरकार 14 साल से ज्यादा उम्र के किसी भी व्यक्ति को अवैध प्रवासन के आधार पर देश से निकाल सकती है। इसका भी नुकसान भारतीय हिंदुओं को अधिक होगा।
सोचें, अच्छे दिन की उम्मीद में 2014 में भारत के हिंदुओं ने जो सरकार बनाई थी उसका क्या हासिल है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात से सबसे बड़ी संख्या में हिंदू भाग रहे हैं। वे अमेरिका, कनाडा जा रहे हैं।
गुजरात और पंजाब से लोग जहाज भर कर लैटिन अमेरिकी देशों में जाते हैं और वहां से डंकी रूट से कनाडा और अमेरिका में घुसने की कोशिश कर रहे हैं। इस प्रयास में इस साल अभी तक एक सौ भारतीय नागरिक मरे हैं और सैकड़ों घायल हुए हैं।
हर घंटे अमेरिका की सीमा पर 10 भारतीय अवैध रूप से अमेरिका में घुसने की कोशिश में पकड़े जा रहे है, इनमें पांच गुजराती होते हैं। इस साल अब तक 90 हजार से ज्यादा लोग पकड़े जा चुके हैं।
अमेरिका में अवैध प्रवासियों को पकडऩे और निकालने का अभियान जोर पकड़ेगा, तो मेक्सिको के नागरिकों के बाद सबसे बड़ा शिकार हिंदू होंगे। अमेरिका हो या कनाडा दोनों जगह हिंदू पीटे जा रहे हैं, अपमानित हो रहे हैं और निकाले जा रहे हैं।
सोचें, 10 साल में कहां से कहां पहुंच गए! 10 साल पहले इस तरह से देश के अमीर, गरीब और मध्य वर्ग के लोग भागते हुए नहीं थे। उनमें देश छोड़ कर दूसरे देश की नागरिकता लेने की होड़ नहीं मची थी। लेकिन पिछले 10 साल में 12 लाख से ज्यादा लोग भारत की नागरिकता छोड़ कर दूसरे देश की नागरिकता ले चुके हैं।
सवाल है कि 10 साल में देश में ऐसा क्या हो गया, जिसकी वजह से लोग देश छोड़ कर भागना चाह रहे हैं? या तो वे बेहतर जीवन की तलाश में जा रहे हैं या अपनी और अपने बच्चों के भविष्य और उनकी सुरक्षा की चिंता से जा रहे है?
भारत में ट्रंप की जीत की खुशी मनाई जा रही है लेकिन हकीकत यह है कि ट्रंप की नीतियां हिंदुओं पर सर्वाधिक भारी पडऩे वाली है। नागरिकता कानून के साथ साथ ट्रंप वीजा के नियम भी बदलने वाले हैं, जिससे भारतीय पेशेवरों और छात्रों के लिए वहां वीजा लेना मुश्किल होगा।
एच वन वीजा की संख्या सीमित होगी तो एच फोर वीजा के कानून में बदलाव होगा। इस कानून के तहत अमेरिका में एच वन वीजाधारक के आश्रित को रहने और काम करने की आजादी मिलती है। इसे ट्रंप बदल देंगे। उनकी संरक्षणवादी नीतियों से हिंदुओं की मुश्किल बढ़ेगी तो भारतीय कंपनियों के लिए भी कामकाज मुश्किल होगा। यह भी उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि अमेरिकी कांग्रेस की कमेटियां भारत में धार्मिक और जातीय भेदभाव पर हर साल देने वाली अपनी रिपोर्ट में भारत को लेकर चिंता जताना बंद कर देंगी।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)