नज़रिया: वन नेशन-वन इलेक्शन ! आपत्ति और औचित्य?
अजय दीक्षित
इस बार 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा था कि वे देश में लोकसभा और राज्यसभाओं के चुनाव एक साथ करवाएंगे। इससे श्रम शक्ति, मैन पावर और धन की बचत होगी। आचार संहिता लगने से काम नहीं रुकेंगे। बात सौ फीसदी ठीक है। 1952 से 1967 तक ऐसा ही होता था विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ हुये थे। इसके बाद बीच में ही विधानसभाएं भंग होने के कारण, या गवर्नर रूल लगने के के कारण यह व्यवस्था बिगड़ गई। अब साल भर कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। प्रश्न गंभीर है और इस पर व्यापक चर्चा की जरूरत है। केन्द्रीय सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति महामहिम कोविंद जी की अध्यक्षता में इस विषय पर विचारार्थ एक समिति बनाई थी। इसमें देश के जाने-माने आठ सदस्य थे । विख्यात विधि वेक्ता साल्वे भी थे। कांग्रेस के तब विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी भी थे। इस कमेटी ने कई हजार पेज की रिपोर्ट सौंपी है। अब रिपोर्ट पढ़कर ही पता चल सकता है कि इस मसले पर कितने हजार रिपोर्ट की जरूरत क्या थी। आज-कल तो रूलिंग पार्टी के शीर्षस्थ नेता जो बंद कमरे में तय कर लेते हैं उसे लागू कर देते हैं। पर इस देश में दिखावे का चलन है। विशेष उत्सवों पर वधू को, नवजात शिशु को, सम्मान दिए जाने वाले व्यक्ति को लिफाफे दिये जाते हैं। पहले आशीर्वाद दिया जाता था। खैर अब जब मोदी जी ने तय कर लिया है कि इस देश में एक साथ चुनाव होंगे तो इसका इम्प्लीमेंटेशन जरूर सन् 2029 के चुनाव से हो जायेगा।
यह भी कहा गया है कि इससे धन भी बचेगा । यह बात सौ फ़ीसदी ठीक है। परन्तु इस बार पहली सितम्बर को हिमाचल प्रदेश में वहां के कर्मचारियों को उनका वेतन क्यों नहीं मिला? क्योंकर मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों को अपने वेतन का त्याग करना पड़ा? अरविन्द केजरीवाल ने फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री बस में यात्रा, फ्री इलाज, फ्री एजुकेशन, फ्री तोहफा की जो प्रथा शुरू की थी, संक्रामक रोग की तरह सभी राज्यों में फैल चुकी है चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो। शुरू में प्रधानमंत्री मोदी जी ने इसे फ्री बी, या फ्री रेबड़ी कहा था। पर आज भाजपा भी उसी रास्ते पर है । मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने प्रदेश की सभी महिलाओं को 1250/- महीने का जेब खर्च दिया और कहा कि यह भाई की ओर से बहन को नेग है। अब सरकारी खर्च से भाई बहन को रक्षाबंधन की गिफ्ट दे रहा है। अब कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, तेलुगु देशम आदि समेत सभी राज्यों ने भी इस प्रथा को चालू कर दिया। अब हरियाणा में भाजपा ने भी अपने घोषणा पत्र में ऐसी ही राशि सभी महिलाओं को देने का वादा किया है। अरविन्द केजरीवाल ने कहा था कि वह विकास के कार्यों में बचत कर यह राशि बांट रहे हैं। अरविन्द केजरीवाल का कहना है कि वह रिजर्व बैंक से उधार लेकर यह नहीं बांट रहा है। अब असलियत क्या है, यह तो केन्द्र सरकार ही स्पष्ट कर रही है।
अब कोई भी पार्टी हो, भाजपा समेत सभी तरह-तरह के फ्री वीज़ बांट रहे हैं — फ्री बिजली, फ्री बस यात्रा, फ्री गिफ्ट, लड़कियों को फ्री स्कूटी, फ्री शिक्षा, सब कुछ फ्री है। इन सब राज्यों पर रिजर्व बैंक का कई लाख करोड़ का कर्ज है। कुछ बातें फ्री ठीक हैं जैसे फ्री एजुकेशन, गांव से लड़कियों को शहर में पढऩे आने पर फ्री बस आदि।
अभी यदि देश एक चुनाव का नारा पैसे बचाने का है तो और भी कई कदम उठाने होंगे। सांसदों औ रविधायकों की पेंशन बंद की जाना चाहिए। उनकी परिवार सहित फ्री यात्रा, फ्री हवाई सफर बंद होना चाहिये। उद्घाटन समारोह बन्द होने चाहिए। जब प्रधानमंत्री कोई उद्घाटन करते हैं तो साज सजावट और उनकी सुरक्षा पर कई करोड़ खर्च हो जाते हैं। आखिर अफसर की कुर्सी के पीछे तौलिया का क्या औचित्य है ? अब तो पसीना आता ही नहीं, ए.सी. चलता है। अनेक मामले हैं जहां टैक्स पेयर का पैसा बर्बाद हो रहा है। इतने बड़े सेक्रेटीएट की क्या जरूरत है। मंत्रियों की जिलों की यात्रा पर होने वाला टी.ए., डी.ए. का क्या औचित्य है। असल में भारत में खर्च का ऑडिट जरूरी है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)