गर्व: विख्यात लोक कलाकर नरेंद्र सिंह नेगी को आज देंगे राष्ट्रपति संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार

गर्व: विख्यात लोक कलाकर नरेंद्र सिंह नेगी को आज देंगे राष्ट्रपति संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार
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देहरादून। अपनी रचनाओं के ज़रिए उत्तराखंड की प्रदूषित होती जा रही राजनीति पर समय समय पर करारी चोट करने वाले सुप्रसिद्ध लोक गायक एवं संगीतकार नरेंद्र सिंह नेगी को राजनीतिक दुराग्रहों के चलते भले ही अब तक पद्म पुरस्कार  से वंचित रहना पड़ा हो लेकिन हमेशा जन सरोकारों को अपने गीतों की आत्मा में पिरोने वाले ‘नेगी दा’ को अब संगीत नाटक अकादमी जैसा  राष्ट्रीय  पुरस्कार का मिलना उनके लिए ही नहीं, समूचे उत्तराखंड के लिए  गर्व की बात है।

9 अप्रैल को राष्ट्रपति के हाथों से नेगी यह पुरस्कार प्राप्त करने जा रहे हैं। इस समारोह में देश भर से चयनित 42 प्रख्यात संगीतकारों, नर्तकों, लोक एवं जनजातीय कलाकारों और रंग कर्मियों को उनके विशिष्ट योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। वहीं, इस बार पारंपरिक व लोक संगीत केटेगरी में पांच संगीतकारों को सम्मानित किया गया है, जिसमें उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी का नाम भी है। सोमेश्वर के दीवान सिंह बजेली को भी संगीत एवं नाट्य अकादमी फेलोशिप और अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। नेगी दा उत्तराखंड के मशहूर लोक गीतकारों और गायकों में से एक हैं। उनकी श्री नेगी नामक संस्था उत्तराखण्ड के कलाकारों के लिए एक लोकप्रिय संस्थाओं में से एक है। नरेंद्र सिंह नेगी मूल रूप से पौड़ी जिले के रहने वाले हैं, जिनका जन्म 12 अगस्त 1949 को हुआ. नेगी ने अपने म्यूजिक करियर की। शुरुआत गढ़वाली गीतमाला से की थी और यह गढ़वाली गीतमाला 10 अलग-अलग हिस्सों में थी। नेगी की पहली एल्बम का नाम बुरांस रखा गया, जो कि पहाड़ों में पाया जाने वाला एक जाना माना एवं सुंदर सा फूल है। इसके बाद ये सिलसिला चलता रहा। अब तक वे हजार से भी​ अधिक गानों को आवाज दे चुके हैं।

नरेंद्र सिंह नेगी लोक कलाकार के साथ ही लेखक और कवि भी हैं। उनकी अब तक 3 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। नेगी की पहली पुस्तक खुचकंडी उनकी दूसरी पुस्तक गाणियौं की गंगा, स्यणियौं का समोदर उनकी तीसरी पुस्तक मुट्ठ बोटी की राख शामिल हैं। इसके अलावा उनके चर्चित राजनीतिक गीत नौछमी नारेणा पर 250 पृष्ठों की एक किताब गाथा एक गीत कीरू द इनसाइड स्टोरी ऑफ नौछमी नारेणाश् 2014 में प्रकाशित हो चुकी है और यह काफी चर्चित रही।

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