बड़ी खबर: पूर्व सीएम हरीश रावत ने हरिद्वार भूमि घोटाले की उठाई सीबीआई जांच की मांग

करोड़ों के इस घोटाले को राजनैतिक संरक्षण मिलने की जताई आशंका

देहरादून । पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हरिद्वार भूमि घोटाले की न्यायिक देखरेख में सीबीआई जांच कराने की मांग सरकार से की है। उन्होंने कहा कि इस घोटाले के पीछे सफेदपोश व्यक्तियों की संलिप्तता दिखती है।
उन्होंने पंचायत चुनाव नहीं कराने को बड़ी चूक बताते हुए कहा कि इस मामले में जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बुधवार को अपने डिफेंस कॉलोनी स्थित आवास पर आयोजित पत्रकार वार्ता में हरिद्वार भूमि घोटाला मामले की न्यायिक देखरेख में सीबीआई जांच कराए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि यह अत्यधिक गंभीर मामला है। यह बड़ा भ्रष्टाचार है। हरीश रावत ने कहा कि भूमि घोटालों की जांच या तो जज की देख-रेख कराई जाए, वरना उच्चस्तरीय एसआईटी गठित हो या फिर सीबीआई से मामले की जांच कराई जाए। जो भी जांच हो वह कोर्ट की देखरेख में होनी चाहिए। वहीं हरीश रावत ने आरोप लगाते हुए कहा कि एक बात शर्तिया है कि ऐसा खुला घोटाला, एक-दो, तीन अधिकारी नहीं कर सकते। राजनीतिक संरक्षण या संलिप्तता, दोनों में से एक अवश्य है। मामला पचाने लायक नहीं था, इसलिए अधिकारियों पर गाज गिर गई। मगर सफेदपोश का क्या होगा? चाहे कपड़ों का रंग कैसा ही क्यों न हो। बता दें कि हरिद्वार जमीन घोटाले में धामी सरकार ने बड़ी कार्रवाई करते हुए तीन जून को हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह, तत्कालानी हरिद्वार नगर आयुक्त आईएएस वरुण चौधरी और पीसीएस अधिकारी अजय वीर समेत सात अधिकारियों को निलंबित किया।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एलिवेटेड रोड बनाने के नाम पर मलिन बस्तियों में रह रहे गरीब लोगों को बेघर किए जाने का आरोप लगाते हुए उन्हें हटाने से पहले सर्किल रेट से बड़ी दरों पर मुआवजा देने की पैरवी की। उन्होंने प्रदेश सरकार पर पंचायत चुनाव टालने का आरोप लगाते हुए नसीहत दी कि उसे पंचायत चुनावों को लेकर किसी भी तरह के बदलाव करते वक्त केंद्रीय कायदे कानूनों का पालन सुनिश्चित कर लेना चाहिए।एक सवाल के जवाब में पहाड़ के दिग्गज कांग्रेसी नेता हरीश रावत ने कहा कि उनकी सक्रियता और गतिविधियां किसी राजनीतिक उद्देश्य के लिए नहीं, बल्कि उत्तराखंडियत के संरक्षण के लिए होती हैं। उन्होंने कहा कि वह पहाड़ मेंं पैदा हुए हैं इसलिए अपनी पैदाइश के साथ ही जीना चाहते हैं। उन्होंने विरोधियों पर तंज कसते हुए कहा कि जिन्हें पहाड़ के पारंपरिक फलों, अनाजों व खानपान को प्रोत्साहित करने के उनके प्रयासों से परेशानी होती है, वह उनसे क्षमा चाहते हुए अपना अभियान हमेशा जारी रखेंगे।