खरी-खरी: इलॉन मस्क के चरणों में लोटपोट भारत के क्रोनी खरबपति

हरिशंकर व्यास
भारत में ही इस तरह सोचना होता है तो सोचें, पैसा व्यक्ति को निडर बनाता है या कायर? पैसा ईमानदारी बनवाता है या बेईमानी? पैसे की अमीरी में प्रतिस्पर्धा का हौसला बनना चाहिए या हारने का डर? पैसा संतोष पैदा करता है या भूखा बनाता है? पैसे से दिमाग सत्य में बेधड़क होता है या झूठ की तूताड़ी बजाता है?
इन सवालों के जवाब मनुष्यों की नस्ल, देश के सभ्य या असभ्य होने की प्रकृति पर निर्भर है! मगर भारत का, उसके सर्वकालिक जगत सेठों, अंबानी, अडानी, मित्तल आदि नामों के खरबपतियों का एक ही इतिहास है। और वह अमिट है। वह बताता है कि पैसा भारत में भ्रष्टाचार, लूट और भयाकुलता तीनों की त्रिवेणी है। नतीजतन पैसा भारत में भीरूता बनाता है। लूट बनवाता है और साथ ही कायर व अप्रतिस्पर्धी भी। इसलिए अधीनता, गुलामी और एजेंटगिरी गारंटीशुदा है। गंभीरता से विचारें कि अंबानी, अडानी, मित्तल आदि धन्नासेठों के देश और विदेश में क्या मायने हैं? मेरा मानना है दुनिया में कहीं भी ऐसे धनपति नहीं हैं, जैसे भारत के हैं! ये भारत के कुलीन-अमीर वर्ग के वे प्रतीक हैं, जिस पर कभी लालकृष्ण आडवाणी ने पत्रकारों के संदर्भ में बोला था कि झुकने को कहा था, लेकिन वे रेंगने लगे।
पर पत्रकार तो भारत का दीन-हीन बेचारा नारद है। उन खरबपतियों पर सोचें, जो शेर को पालतू बना कर प्रधानमंत्री से शेर के पिल्लों को दूध पिलवा बहादुरी के तराने बनवाते हैं! फिर मालूम होता है कि वे खुद और उनके साथ देश ही इलॉन मस्क के चरणों में लोटपोट है। बहुत खराब! बहुत क्षोभजनक!
वह इलॉन मस्क, जिसकी इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी स्टारलिंक के खिलाफ मुकेश अंबानी, सुनील मित्तल अर्थात रिलायंस जियो और एयरटेल ने साझा तौर पर मोदी सरकार के आगे नियमों, कायदों, सैद्धांतिक आधारों पर दलीलें दीं। मस्क की कंपनी के भारत प्रवेश को रोके रखा। मगर गुजरे सप्ताह रातों रात इन्होंने इलॉन मस्क की कंपनी के साथ मार्केटिंग सौदे कर डाले! उसके वेंडर हो गए! भारत की ये दो संचार कंपनियां अपनी ग्राहक संख्या, भारत के विशाल बाजार पर अपनी मोनोपॉली में अपने आपको शेर खां समझती थीं। जियो के मालिक मुकेश अंबानी इलॉन मस्क को रोकने के लिए यहां तक हवाबाजी कर रहे थे कि रिलायंस भारत में खुद की सेटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवा शुरू करेगा। सरकार को नीलामी से ही अंतरिक्ष स्पेक्ट्रम के आवंटन की नीति पर टिके रहना चाहिए। ध्यान रहे दो वर्षों से इलॉन मस्क की कंपनी भारत में उपग्रह आधारित इंटरनेट सेवा शुरू करने की अनुमति के लिए हाथ-पांव मार रही थी। लेकिन अंबानी और मित्तल ने कंपीटिशन के डर में, भारत के लोगों को घटिया सर्विस का गुलाम बनाए रखने, बेइंतहां मुनाफा कमाते रहने की भूख, देश की आत्मनिर्भरता के झूठ से इलॉन मस्क की कंपनी की एंट्री पर रोड़े अटका रखे थे।
और अब क्या सच्चाई है? भारत के ये क्रोनी पूंजीपति इलॉन मस्क की कंपनी का वेलकम ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि रातों रात स्टारलिंक कंपनी से करार करके उसके मार्केटिग एजेंट हो गए हैं! तभी सोचें, भारत के इन अरबपतियों की दशा पर? इन्हें इलॉन मस्क की कंपनी से अपने बाजार, अपने अखाड़े में लडऩा चाहिए था, कंपीटिशन दे कर अमेरिकी कंपनी को नानी याद करानी थी या उससे कमीशनखोरी का करार कर उसकी सेवा की बिक्री करवाने का धंधा बनाना था? जिन दो भारतीय कंपनियों ने संचार में वर्चस्व से अपने को शेर खां बनाया है उनमें यह निडरता, यह ताकत क्यों नहीं जो विदेशी कंपनी से अपने अखाड़े में लड़ने, उसे हराने के लिए कमर कसते!
क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदेश दिया कि लड़ना नहीं उससे सौदा पटाना है?
कुल मिला कर वही कहानी है, वही सत्य है जो ईस्ट इंडिया कंपनी, चाइनीज कंपनियों के आगे भारत के धनपतियों, व्यापारी, उद्योगपतियों का था और है। भारत में सबको सिर्फ आसान पैसा चाहिए। भारत में हाथ काले करके, कड़़ी मेहनत और सच्ची-अच्छी सेवा-सामान देने के बजाय केवल और केवल जैसे-तैसे पैसा कमाने का नशा है, संस्कार और शिक्षा है। मौके, स्थितियों का फायदा उठाना अंबानी-अडानी छाप व्यापारियों का इसलिए डीएनए है क्योंकि पैसे कमाने का यही आसान तरीका है। इलॉन मस्क को पहले आने मत दो और यदि आए तो उसके एजेंट, वेंडर बन जाओ। उससे साझा करके उसे समझाओ कि वह दुनिया में बाकी जगह भले सस्ती-अच्छी सेवा दे लेकिन भारत के बाजार में महंगी सेवा देनी है। ताकि तुम भी कमाओ और हम भी कमाएं। ग्राहकों को सर्विस या उनकी शिकायतों जैसे काम हमारी कंपनी संभाल लेगी! जाहिर है धंधे की इस तरकीब में भारत में संचार वैसा ही घटिया और महंगा बना रहेगा जैसा शुरू से आज तक है।
स्वतंत्र भारत का प्रामाणिक सत्य है कि बीएसएनल, वीएसएनएल से एमटीएनएल, एयरटेल, जियो, वोडाफोन आदि का संचार क्षेत्र हो या स्टील, सीमेंट, इंफास्ट्रक्चर, नागरिक उड्डयन की एयरलाइंस, हवाईअड्डे, पॉवर आदि की तमाम सरकारी और प्राइवेट कंपनियों में पैसे की भूख में बेईमानी के अलावा कभी कोई दूसरा इनोवेशन नहीं रहा। पैसे की भूख वह पॉवर है, जिसके करंट से उद्यमशीलता, इनोवेशन, क्वालिटी, कंपीटिशन, ईमानदारी और उत्पादकता या निर्माण सब काला-कलुषित-कचरा बन जाता है। नरेंद्र मोदी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में क्रोनी पूंजीवाद से पैदा हुए खरबपतियों की हर क्षेत्र में कार्टेल याकि गैंग बना कर उनसे ‘आत्मनिर्भर भारत’ का ख्याल पाला। आज परिणाम क्या है? न केवल लघु, मझोले और अरबपतियों से नीचे के तमाम धंधे या तो चौपट हैं या कार्टेल की दादागिरी में सांस ले रहे हैं। रिलायंस की भूख के ये हाल हैं कि तमाम विदेशी ब्रांडों से मार्केटिंग (जैसे अभी स्टारलिंक से किया) सौदे करके उनकी भारत में अपनी दुकानें बना ली ताकि देश में छोटे-मझोले उद्यमियों, व्यापारियों के लिए विदेश से तकनीक-ब्रांड सहयोग से वह कोई संभावना नहीं रहे, जिससे भारत में सौ फूल खिल सकें।
सोचें, इलॉन मस्क और मुकेश अंबानी में क्या फर्क है? इलॉन मस्क दुस्साहस, जोखिम से बना उद्यमी है। उसने वह सोचा, वह किया जो हर तरह से जोखिम भरा था। इलॉन मस्क का वैश्विक पैमाने पर आज कई तरह का मखौल है लेकिन इस सत्य को कौन नकारेगा कि उसका अंतरिक्ष यान यदि अभी अंतरिक्ष स्टेशन में अटके यात्रियों को लिवा लाने के लिए उड़ा हुआ है तो जोखिम, विज्ञान, तकनीक, इनोवेशन में इलॉन मस्क की कैसी-कैसी क्या अभूतपूर्व प्राप्तियां हैं! इलॉन मस्क सरकारी रहमोकरम, क्रोनी पूंजीवाद की देन नहीं है, बल्कि निज पुरुषार्थ, हिम्मत, दूरदृष्टि से बना खरबपति है। और मुकेश अंबानी क्या है? पिता धीरूभाई द्वारा इंदिरा शासन से प्राप्त लाइसेंस, कोटा-परमिट के भ्रष्ट तंत्र से निर्मित एक अरबपति की विरासत का वह खरबपति जो न इलॉन मस्क से लड़ सकता है और न नरेंद्र मोदी या भारत सरकार से!
हां, यदि गुर्दा होता तो अंबानी, एयरटेल उन्हीं तर्कों, उन्हीं बातों, उसी कथित स्वदेशीवाद, भारत की सुरक्षा आदि के तर्कों पर यह साझा बयान दे कर कह सकते थे कि सरकार नियम-कायदे, परपंरा को ताक पर रख स्टारलिंक को अनुमति दे रही है। इसलिए वे इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ेंगे!
उफ! क्या लिख दिया मैंने! मुकेश अंबानी, मनोज मोदी आदि ऐसी बात सुनते ही तत्क्षण कंपकंपा जाएंगे।
इलॉन मस्क हो या अमेरिका का कोई पूंजीपति वह इस तरह सोचने में रत्ती भर नहीं चूकेगा। पहली बात तो यह कि दुनिया की कोई भी कंपनी, चाइनीज कंपनी भी यदि अमेरिका में कंपीटिशन के लिए जाएगी तो उससे वहां घबराहट नहीं बनेगी। वहां तकनीक की चोरी या नकल की चिंता होती है बाकी माना जाता है कि बिना कंपीटिशन के धंधा ही क्या है!
कैसी विडंबना है कि रिलांयस जियो और एयरटेल के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने पैरवी की है! सोचें, सीपीएम की इस दलील पर कि भारत सरकार स्टारलिंक को इसलिए अनुमति नहीं दे क्योंकि सुरक्षा खतरे में पड़ेगी! यह देश की कुल बुद्धि का एक कुतर्क है। अर्थात भले पिछड़े रहें, ग्राहक ठगे जाते रहें, लेकिन नई तकनीक, नए ज्ञान-विज्ञान, नई क्षमताओं से तौबा करनी है। एक वक्त था जब सीमा क्षेत्र में फोन कॉल भी (जासूसी, खुफियागिरी) असुरक्षा पैदा करता था अब आकाश में फैले सेटेलाइट्स से इंटरनेट कनेक्शन पर असुरक्षा का कुतर्क! जबकि ठीक बगल में चीन और भारत के बीच भूटान की सरकार ने इलॉन मस्क की स्टारलिंक की सेवा ली हुई है। इस सेवा से उसने पाया है कि ऊंचे पहाड़ों में अवस्थित भूटान में दूरस्थ जगहों पर भी स्टारलिंक की ब्राडबैंड सेवा से कनेक्शन तेज गति का है। भूटान ने रिलायंस जियो और एयरटेल की सेवा को लायक, समर्थ नहीं माना और उसने इलॉन मस्क की कंपनी को चुना। वह क्या भारत के खरबपतियों और उनकी सेवाओं को थप्पड़ नहीं था?
अंबानी, अडानी, मित्तल, जिंदल आदि भारतीय खरबपतियों की एक भी कंपनी ऐसी नहीं है जो पूंजीवाद के गढ़ अमेरिका या पश्चिमी देशों में अपनी उपस्थिति बनाए हुए हो या जिसने भारत का झंडा गाड़ा हुआ हो। आईटी की बैकऑफिस कंपनियां इन देशों में धंधा कर रही हैं, उन्हें सस्ते में लेबर से याकि उनके प्रोजेक्ट बना रही है लेकिन टाटा और बिड़ला के चंद (जैसे ब्रिटेन में लैंडरोवर कार, धातु प्लांट) कारखानों के संचालन को छोड़ दें तो ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जिसमें भारत, भारतीय पूंजीवाद की कहीं श्रेष्ठता झलके। इसलिए क्योंकि भारत में पूंजीपति नहीं है, क्रोनी पूंजीपति है। ये जब भारत में सामान्य स्तर की समान्य सेवाएं नहीं दे सकते हैं तो अमेरिका व यूरोप में क्या खाक सेवा देंगे? भारत में इन दिनों हर कोई महंगी हवाई यात्रा की घटिया सेवा का रोना लिए हुए है। कल्पना करें यदि सिंगापुर एयरलाइंस या खाड़ी के पड़ोसी देशों को भारत सरकार घरेलू एयर सेवा का मौका दे डाले तो यात्रियों को कैसी राहत मिलेगी? मगर ऐसा होना इसलिए संभव नहीं क्योंकि आजाद भारत की सरकार और उसका तंत्र-मंत्र जन्म से ले कर आज तक सोचता सिर्फ यह है कि मेरा क्या? तब हमारे क्रोनी तंत्र का क्या होगा? हमें पालतू अमीर बनाने हैं, पालतू शेर बनाने हैं! इसलिए जब डोनाल्ड ट्रंप ने आंखें तरेरी तो भारत सरकार के पास इस ट्विट के अलावा कोई चारा नहीं था कि, ‘स्टारलिंक, भारत में आपका स्वागत है! दूरदराज के क्षेत्रों की रेलवे परियोजनाओं के लिए उपयोगी होगा।’
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
