मुद्दा: दिल्ली-एनसीआर में बीमार समाज और खराब वातावरण की समस्या
दिल्ली की वायु गुणवत्ता सूचकांक में लगातार गिरावट जारी है। जो पांच सौ के पार जा चुकी है। वायु प्रदूषण के इस स्तर को खतरनाक से भी खतरनाक वाले स्तर पर बताया जा रहा है।
आंकड़ों के अनुसार राजधानी के आसमान पर धूल की मोटी परत छाई हुई है। दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का पीएम 2.5 बाताया गया, जो वि स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सीमा से पैंसठ गुना अधिक खतरनाक पाया गया। इस गंभीरता को इससे समझा जा सकता है कि शून्य से पचास को अच्छा व 51 से सौ को संतोषजनक माना जाता है। जो बढ़ते-बढ़ते 401-450 के बीच गंभीर व 451 से ऊपर बेहद गंभीर माना जाता है।
खबरें हैं कि उन्हें सन संबंधी समस्याओं के अलावा खांसी जैसी समस्याएं आम हैं। गले में खुश्की और खराश की शिकायतें भी खूब की जा रही हैं। दिवाली में जलाए गए पटाखों से उठा धुंआ भी इस अचानक खतरनाक हुई हवा का कारण बताया जा रहा है। पटाखों को प्रतिबंधित करने तथा लगातार जागरूकता फैलाने के बावजूद कोई खास असर होता नहीं नजर आ रहा। सारा दोष आतिशबाजी को देना उचित नहीं है क्योंकि दिवाली के साथ ही हवा की मंद पड़ती गति व लगातार स्मॉग बने रहने के चलते भी वायु प्रदूषण जानलेवा बन गया।
दिल्ली-एनसीआर का यह इलाका प्रतिवर्ष इसी मौसम में देश भर में सबसे प्रदूषित के दायरे में आ जाता है। कहा जाता है कि इसके कारणों में वाहनों की हिस्सेदारी 16त्न से अधिक होती है। परंतु पराली के धुएं की भागीदारी बढक़र 35त्न तक बढ़ गई थी। हरियाणा, पंजाब व उप्र से आने वाली हवाओं को इसका दोषी ठहराया जाता है। जब तक यह स्तर खतरनाक बताया जाता है, दोषारोपण भी उसी गति से बढ़ता रहता है।
हवा की गुणवत्ता को सुधारने के प्रति न तो ठोस कदम उठाए जाते हैं, न ही इन चेतावनियों को गंभीरतापूर्वक लिया जाता है। वायु प्रदूषण के चलते इन इलाकों के आधे से अधिक बाशिंदों को विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें तो हैं ही। ढेरों लोग बेमौत मारे भी जाते हैं।
विचारणीय है कि देश के 72 देशों में वायु गुणवत्ता खराब के दायरे में आने के कारणों की पड़ताल होनी चाहिए। हम अपनी आने वाली नस्लों को बीमार समाज और खराब वातावरण देकर किसी का भला नहीं कर रहे। हम इस गंभीरता पर समय रहते चेते नहीं इसलिए आज इस खतरनाक स्तर को झेलने को मजबूर हैं।