क्या भारत में शैक्षिक स्वतंत्रताएं बहुत सिमट गई हैं ?
जिन समाजों में आविष्कार होते हैं और जिनकी निगाह भविष्य पर टिकी होती है, वहां दिमागी आजादी पर सीमाएं लगाने की कोशिश सामान्यत: नहीं होती। बल्कि यह मान्यता प्रचलित है कि दिमागी नियंत्रण से बेहतर है, दिमागी नटखटपन को सहना, जबकि एक ताजा अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि पिछले दस साल में भारत में शैक्षिक स्वतंत्रताएं बहुत सिमट गई हैं। स्कॉलर्स ऐट रिस्क (एसएआर) नाम की अंतरराष्ट्रीय संस्था ने अपना ताजा शैक्षिक स्वतंत्रता सूचकांक जारी किया है। एसएआर 665 विश्वविद्यालयों का नेटवर्क है, जिसने विभिन्न देशों में शैक्षिक स्वतंत्रता की स्थिति मापने का एक पैमाना विकसित किया है।
ताजा रिपोर्ट ‘फ्री टू थिंक- 2024’ शीर्षक से जारी की गई है। इसमें बताया गया है कि एक जुलाई 2023 से 30 जून 2024 के बीच 51 देशों में उच्चतर शिक्षा से जुड़े समुदायों की आजादी पर 391 प्रहार किए गए। इन देशों में भारत का खास उल्लेख है। 2013 में एसएआर के सूचकांक पर भारत को 0.6 अंक प्राप्त हुए थे। 2024 में इस पर भारत को सिर्फ 0.2 अंक मिले हैँ। इस तरह भारत को एसएआर ने ‘पूर्णत: नियंत्रित’ देशों की श्रेणी में डाल दिया है। इस संस्था ने एक ऐतिहासिक डेटाबेस भी तैयार किया है। उसकी रोशनी में इसने कहा है कि भारत में आज शैक्षिक स्वतंत्रता की स्थिति 1940 के दशक के मध्य के बाद से सबसे निचले स्तर पर है।
रिपोर्ट में भारत पर शैक्षिक स्वंत्रता पर प्रहार की कई मिसालों का जिक्र है। कहा गया है- ‘भारत में छात्रों और विद्वानों की शैक्षिक स्वतंत्रता के सामने जो सबसे बड़े खतरे दरपेश हैं, उनमें विश्वविद्यालयों, विश्वविद्यालयों की राजनीति, एवं छात्र प्रतिरोध को नियंत्रित करने और हिंदुत्व का एजेंडा थोपने के भारतीय जनता पार्टी के प्रयास भी शामिल हैं।’ चूंकि यह रिपोर्ट शैक्षिक स्वतंत्रता के बारे में है, इसलिए संभवत: इसकी भारत में ज्यादा चर्चा नहीं होगी। रिपोर्ट चर्चित हो, तो सरकार उसे ठुकरा देगी। सत्ता पक्ष का जवाब आएगा कि यह पूर्वाग्रह से ग्रस्त रिपोर्ट है। ये सब आज के दौर में अपेक्षित प्रतिक्रियाएं हैं। मगर उनसे इस रिपोर्ट से उठे मूलभूत प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलेंगे।