मुद्दा: कनाडा से तल्ख़ रिश्तों के आलोक में भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि
निज्जर हत्याकांड में कनाडा के हाथ ओटवा स्थित भारतीय उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा और कई अन्य राजनयिकों तक पहुंचते दिखे। उसने इन राजनयिकों को ‘पर्सन्स ऑफ इंटरेस्ट’ घोषित कर दिया। कनाडाई कानून में ‘पर्सन ऑफ इंटरेस्ट’ उस व्यक्ति को कहा जाता है, जिसके पर किसी अपराध में शामिल होने के ठोस सबूत तो ना मिला हो, लेकिन शक हो कि संबंधित व्यक्ति की भूमिका हो सकती है। इसलिए उससे पूछताछ या उसकी जांच की जरूरत जांचकर्ता महसूस करते हों। कनाडा ने भारत से कहा कि इन राजनयिकों को मिला कूटनीतिक अभयदान वह हटा दे, ताकि उनके खिलाफ जांच हो सके। भारत ने इससे इनकार करते हुए कनाडा- खासकर कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिस ट्रुडो के खिलाफ बेहद सख्त बयान जारी किया।
अमेरिकी मीडिया के मुताबिक तब कनाडा ने वर्मा सहित छह नागरिकों को निष्कासित कर दिया, हालांकि भारत ने ऐलान किया कि उसने उन्हें वापस बुलाया है। बदले में भारत ने नई दिल्ली स्थित छह कनाडाई राजनयिकों को निकाल दिया। दूसरी तरफ खबर है कि अमेरिका स्थित खालिस्तानी उग्रवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू के मामले में भारतीय जांचकर्ताओं ने अमेरिकी मांग के मुताबिक कथित ‘सीसी-1’ की पहचान कर उसे गिरफ्तार किया है। जांच में प्रगति की सूचना देने एक भारतीय दल अमेरिका पहुंच रहा है। मगर पेच यह खबर है कि कनाडा में मारे गए खालिस्तानी उग्रवादी हरदीप सिंह निज्जर के मामले में भी अमेरिका ने कनाडा सरकार के रुख का समर्थन किया है।
खबरों के मुताबिक अमेरिका और कनाडा के अधिकारियों ने साझा तौर पर इन दोनों मामलों में भारतीय अधिकारियों से कई दौर की वार्ता की है। अमेरिका और कनाडा फाइव आईज समझौते का हिस्सा हैं, जो आपस में साक्ष्य साझा करते हैं। इसलिए भारत सरकार का पन्नू और निज्जर मामलों में अलग-अलग रणनीति अपनाना संभवत: दीर्घकाल में कारगर ना हो। दोनों मामलों में भारत पर एक जैसे इल्जाम लगे, जिनका खराब असर भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर पड़ा है। इससे विदेश नीति में अमेरिकी धुरी को प्राथमिकता देने की नरेंद्र मोदी सरकार की रणनीति को झटका लगा है। इस मुश्किल से वह कैसे उबरती है, भारत की भावी अंतरराष्ट्रीय भूमिका काफी कुछ इस पर निर्भर करेगी।