मुद्दा: भावना के खिलाफ नियमों में परिवर्तन

न्यायमूर्ति कोहली और न्यायमूर्ति मेहरा की खंडपीठ ने केंद्र के रुख पर उचित नाराजगी जताई है। जजों ने कहा कि कोर्ट ने इस बारे में कई आदेश दिए हैं, लेकिन केंद्र ने उनकी भावना के खिलाफ जाकर नियमों में परिवर्तन कर दिया।
आरंभ से ही नरेंद्र मोदी सरकार का रुख कारोबार जगत को तमाम तरह के विनियमों से मुक्त करने का रहा है। व्यापार के रास्ते में रुकावट डालने वाले नियमों और व्यापार को सामाजिक तकाजों के दायरे में रखने वाले नियमों के बीच वर्तमान सरकार ने फर्क मिटा दिया है। ऐसा ही एक कदम पिछली एक जुलाई को उठाया गया। केंद्र ने 1945 से लागू औषधि एवं कॉस्मेटिक्स नियमावली से नियम 170 को हटा दिया। इस नियम का मकसद गुमराह करने वाले विज्ञापनों को रोकना था। गौरतलब है कि रामदेव के पतंजलि आयुर्वेद के इस तरह के विज्ञापनों पर सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया था। केंद्र ने नियम में बदलाव इसी विवाद की पृष्ठभूमि में किया। नई अधिसूचना के तहत आयुष (आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, होमियोपैथी एवं प्राकृतिक चिकित्सा) से संबंधित कंपनियों को विज्ञापन संबंधी तमाम मर्यादाओं से मुक्त कर दिया गया। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिसूचना पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति संदीप मेहरा की खंडपीठ ने केंद्र के रुख पर उचित नाराजगी जताई है।
जजों ने कहा कि कोर्ट ने इस बारे में कई आदेश दिए हैं, लेकिन केंद्र ने उनकी भावना के खिलाफ जाकर नियमों में परिवर्तन कर दिया। कोर्ट ने अगले आदेश तक एक जुलाई की अधिसूचना पर रोक लगाते हुए कहा कि तब तक नियम 170 नियमावली का हिस्सा बना रहेगा। यहां याद कर लेना उचित होगा कि पतंजलि आयुर्वेद ने कई भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित किए थे, जिसके खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कोर्ट की पनाह ली थी। न्यायालय ने माना कि एसोसिएशन की दलीलों में दम है। उसने रामदेव और इस कंपनी के प्रबंध निदेशक बालकृष्ण को माफी मांगने के लिए मजबूर किया। उचित यह होता कि इस प्रकरण की रोशनी में केंद्र ज्यादा सख्त नियम लागू करने की पहल करता। मगर उसने आयुष कंपनियों को अंकुश मुक्त करने के कदम उठाए। केंद्र का ऐसा नजरिया पर्यावरण एवं अन्य कानूनों के मामले में पहले भी सामने आया है। उनके दुष्परिणाम धीरे-धीरे जाहिर होते गए हैं। इसके बावजूद हर कीमत पर कॉरपोरेट मुनाफा में सहायक बनने की राह वर्तमान सरकार नहीं छोड़ रही है।
