मुद्दा: जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाये जाने की ज़रूरत क्यों है?
डॉ. असद रजा
जुलाई 12 से 31 तक विश्व में विशेष रूप से हमारे देश में जनसंख्या स्थिरता पखवाड़ा मनाया जा रहा है जिसमें जनसंख्या को बढ़ने से रोकने के लिए जागरूकता रैलियां निकाली जा रही हैं। जनसंख्या वृद्धि की समस्या के समाधान के बारे में विभिन्न राजनीतिक दलों के बयान आए हैं।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह तथा भाजपा बिहार के राज्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह कठोर जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाए परंतु एनडीए के घटक दल जदयू के नेता इस बारे में कठोर कानून बनाने का समर्थन नहीं करते क्योंकि उन्हें दलित और मुस्लिम मतदाताओं के बिदकने का भय है।
वास्तव में जदयू और टीडीपी जैसे मोदी सरकार के घटक दलों को चिंता है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून का समर्थन करने से उनका मुस्लिम और दलित वोट खिसक सकता है, इसलिए ये दल परिवार नियोजन के लिए जन-जागरूकता पर बल देते हैं। कुछ अति धर्मभीरु और मजहबी लोग बच्चों को अल्लाह की देन समझते हैं। मानते हैं कि अन्न-भोजन देने की जिम्मेदारी अल्लाह ने ले रखी है, इसलिए जनसंख्या को रोकने के लिए कठोर कानून की जरूरत नहीं है परंतु यह तर्क नहीं, कुतर्क है।
ऐसा होता तो अफ्रीका आदि क्षेत्रों में लोग भूख से क्यों मरते? निश्चय ही हमारा देश विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। हमने इस मैदान में चीन को भी पछाड़ दिया है, और आज एक अरब 45 लाख से अधिक आबादी का बोझ उठा रहे हैं। बढ़ती गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण तथा अपराध में वृद्धि का एक प्रमुख कारण आबादी में भारी इजाफा भी है। देश में बढ़ती सांप्रदायिकता और घृणा का एक बड़ा कारण भी जनसंख्या में वृद्धि है। बहुसंख्यक हिन्दू आबादी मुसलमानों की बढ़ती आबादी को खतरा मानती है। उनमें से कुछ का यह भी मानना है कि भविष्य में भारत भी पाकिस्तान की भांति इस्लामी राष्ट्र बन सकता है। यद्यपि यह काल्पनिक भविष्याणी है क्योंकि देश में मुसलमानों में भी बच्चों की जन्म दर कम हुई है परंतु हिन्दुओं में यह दर अधिक कम हुई है।
कई अदूरदर्शी मौलवी तथा मुस्लिम नेता भी जनसंख्या रोकने के लिए कड़े कानून का विरोध करके हिन्दुओं की आशंका को मजबूत करते हैं। भाजपा सहित संघ परिवार के सभी संगठन तथा उदारवादी मुसलमान जनसंख्या नियंत्रण कानून के पक्षधर हैं परंतु इस तथ्य की भी अवहेलना नहीं की जा सकती कि उच्च और मध्यम वर्ग के हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन के परिवार साधारणतया दो या तीन बच्चों तक सीमित होते हैं क्योंकि उन्हें अपने बालकों को उत्तम शिक्षा दिला कर सफल नागरिक बनाना होता है, उन्हें पौष्टिक भोजन तथा साफ-सुथरा घर और वस्त्र उपलब्ध कराने होते हैं जबकि निम्न वर्ग के लोग चूंकि अशिक्षित या अर्द्धशिक्षित होते हैं, और उनके लिए मनोरंजन का एकमात्र साधन सैक्स होता है। अत: वे अधिक बच्चे पैदा करते हैं तथा उन्हें उनकी शिक्षा दीक्षा की चिंता नहीं होती अपितु वे अपने आठ दस वर्ष के बालक को किसी ढाबे पर काम पर लगा देते हैं, और बालक आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाता है। चूंकि मुसलमान, दलित और आदिवासी ही अधिकतर गरीब और आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़े होते हैं, इसलिए उनके ही अधिक बच्चे होते हैं। निस्संदेह मोदी सरकार को कठोर जनसंख्या कानून बनाना चाहिए। परंतु कटु सत्य यह भी है कि संसद में ऐसा सख्त कानून पास कराना कठिन होगा क्योंकि मौजूदा संसद में भाजपा के पास पूर्ण बहुमत नहीं है, इसलिए कोई कानून पास कराने के लिए उसे सहयोगी दलों विशेष रूप से जदयू और टीडीपी का समर्थन लेना होगा परंतु दोनों दल मुस्लिम और दलित वोटर को दृष्टि में रखते हुए कठोर जनसंख्या नियंत्रण कानून को शायद समर्थन न दें।
इसलिए इस कानून को भाजपा शासित प्रदेशों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम, उत्तराखंड, गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि की विधानसभाओं में पास कराके सख्ती से लागू कराना होगा। प्रावधान करना होगा कि कानून लागू होने के बाद राशन कार्ड केवल चार व्यक्तियों यानी माता, पिता व दो बच्चों का ही बनेगा और दो बच्चों को जन्म देने के पश्चात पति या पत्नी में से किसी एक को नसबंदी करानी होगी अथवा लिखित में सरकार को आासन देना होगा कि भविष्य में तीसरा बालक पैदा नहीं करेंगे। तीसरा बच्चा पैदा करने वाले माता-पिता को चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होगा। वैसे राजस्थान में कानून है कि दो से अधिक बच्चों वाले माता-पिता को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। केंद्र सरकार को यह कानून तो बनाना ही चाहिए कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्रति दिन सुबह, दोपहर और रात्रि में दस सेकंड का परिवार नियोजन से संबंधित सरकार द्वारा तैयार किया हुआ विज्ञापन आवश्यक रूप से दिखाए तथा हर भाषा के दैनिक अखबार को परिवार नियोजन का विज्ञापन अनिवार्य रूप से प्रकाशित करना होगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)