जयहिंद: लेखक, पत्रकार एवं क्रांतिकारी देशभक्त राजा महेंद्र प्रताप सिंह, चुनाव में बाजपेयी की जमानत करा दी थी ज़ब्त

जयहिंद: लेखक, पत्रकार एवं क्रांतिकारी देशभक्त राजा महेंद्र प्रताप सिंह, चुनाव में बाजपेयी की जमानत करा दी थी ज़ब्त
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अनंत आकाश
आजादी के आंदोलन की स्वर्णिम परम्पराओं के वाहक के रूप में देहरादून का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। इसी कड़ी में राजा महेंद्र प्रताप सिंह का नाम भी शामिल है। उनका देहरादून से अटूट संबंध था। वह  राहुल सांस्कृत्यायन से मिलने मसूरी स्थित उनके आवास पर भी आये। महेंद्र प्रताप सिंह  लेनिन के अनन्य मित्रों में से एक थे, जो कि वामपंथी विचारधारा को न केवल अच्छा मानते थे अपितु अपने देश में समाजवादी व्यवस्था के प्रबल समर्थक थे। अंग्रेजी हुकूमत राजा महेन्द्र प्रताप सिंह  को गिरफ्तार कर जिंदा या मुर्दा भारत लाना चाहती थी। उन्होंने लगभग 32 साल जापान में निर्वासित जीवन व्यतीत किया। उन्होंने देहरादून में 1914 में आजादी समर्थक “निर्बल सेवक” नाम  से अख़बार भी निकाला।

1 दिसम्बर 1886 को जन्मे बालक को 3 साल की उम्र में हाथरस के राजा-जमींदार हरिनारायण सिंह गोद लेते हैं। वही बालक आगे चलकर कांग्रेस के सम्पर्क में आता है और फिर एक लेखक, एक पत्रकार तथा आगे चलकर क्रांतिकारी देशभक्त बनता है।

   एक राजपुत्र उच्च शिक्षा त्यागकर देश को आज़ाद कराने के लिए ऐशो-आराम छोड़कर एक समाजवादी राष्ट्र बनाने के सपने को पूरा करने लिए दर-दर भटकता है। अपने 28 वें जन्मदिन पर वह  सुदूर अफ़गानिस्तान के काबुल में एक निर्वासित सरकार  बनाकर स्वयं राष्ट्रपति बनता है । बरकतुल्लाह को अपना प्रधानमंत्री बनाता है। उस समय यह भारत के राष्ट्रपति के तौर पर कई राष्ट्र प्रमुखों से भी मिले और भारत के स्वाधीनता आंदोलन के लिए समर्थन जुटाते रहे।
सन 1925 में वह जापान चले गए और 32 साल बाद 1946 में भारत लौटे। राजा महेंद्र प्रताप सिंह कांग्रेस की नीतियों से सहमत नहीं थे। वह एक वामपंथी विचारक थे और समाजवादी राष्ट्र की कल्पना करते थे।1957 में मथुरा संसदीय सीट से वह  निर्दलीय चुनाव लड़े और जनसंघ के अटल बिहारी बाजपेयी को हरा कर लोक सभा पहुंचे।  राजा महेंद्र प्रताप सिंह की आरंभिक शिक्षा उसी मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेजिएट स्कूल में हुई, जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना।

राजा महेंद्र प्रताप सिंह का संक्षिप्त जीवन परिचय :

1.जन्म –  01दिसंबर 1886, रियासत मुरसान, रियासत हाथरस के राजा हरनारायण सिंह के दत्तक पुत्र।

निधन – 29 अप्रैल 1979 ।

पत्नी- बलबीर कौर ।

शिक्षा- बी ए ,अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्याय,तब ऐंग्लो मुहम्दन कालेज के रूप में जाना जाता था

2. 1906 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में शामिल हुए।

1909 में  प्रेम महाविद्यालय वृन्दावन की स्थापना, मालवीय जी उपस्थित रहे।

3. 1911 में आर्य समाज सभा को 80 एकड़ भूमि  दान में दे दिया।

4. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को तीन एकड़ भूूमि दान दी ।

5. 1915 में भारत को आजाद कराने के लिए यूरोप होते हुए काबुल की यात्रा की।

6. संसार संघ के लिए प्रथम विश्वयुद्ध के समय ही सक्रिय।

7. 1932 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित।

8. 1946 में भारत वापस आए।

9.  1957 के आम चुनाव में मथुरा संसदीय क्षेत्र से आजाद प्रत्याशी के रूप में विजयी हुए तथा अटलबिहारी वाजपेयी की जमानत जब़्त  करायी।

10.  01 दिसंबर 1915 को काबुल में भारत की अस्थाई सरकार के राष्ट्रपति बने।

11. 1918 में पेत्रोग्राद में कामरेड लेनिन से भेंट की।

12. अस्थाई भारत सरकार के एक प्रतिनिधि एम पी टी आचार्य के प्रतिनिधि की ताशकंद में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान।

पुण्यतिथि पर राजा महेंद्र प्रताप सिंह को शत् शत् नमन !

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