नजरिया: आर एस एस की नाराजगी की फिक्र नहीं करती मोदी-शाह की जोड़ी

नजरिया: आर एस एस की नाराजगी की फिक्र नहीं करती मोदी-शाह की जोड़ी
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हरिशंकर व्यास
सत्य है नरेंद्र मोदी और अमित शाह संघ को हैंडल करना जानते हैं। चतुर गुजराती व्यापारी की तासीर में मोहन भागवत, नितिन गडकरी जैसे मराठा नेताओं-स्वंयसेवकों को बेखूबी हैंडल कर सकते है। इसलिए इन्हे इस बात की रत्ती भर चिंता नहीं है कि संघ कही नाराज नहीं हो जाए। इसलिए अगले चार-छह महिनों में मोदी-शाह बनाम संघ परिवार में डाल-डाल, पांत-पांत होना है। मैं नहीं मानता कि भाजपा के संगठन को पुरानी संगठनात्मक पटरी पर संघ ला सकेगा। पार्टी उसी दशा में है जैसे एक वक्त वाजपेयी और आडवाणी के वक्त में थी। वाजपेयी ने अपनी सरकार और गांधीवादी-समाजवादी फाउंडेशन के वक्त संघ परिवार और उसके प्रचारकों को हाशिए में डाला था। जैसा अब है वैसे वाजपेयी सरकार के वक्त भी था।

वाजपेयी-बृजेश मिश्रा-जसवंतसिंह-प्रमोद महाजन की सत्ता के आगे संघ प्रमुख सुर्दशन, दत्तोपंत ठेगंडी और उनके तमाम संगठन प्रमुख नाक रगडते रहते थे। वैसे ही आडवाणी के एकाधिकार के वक्त मोहन भागवत आदि के लिए वेंकैया-सुषमा-जेतली-अनंत कुमार की चौकड़ी से भाजपा को मुक्त कराना बड़ा मुश्किल था। तब नरेंद्र मोदी ने  चुपचाप नागपुर में खेला कर आडवाणी की पकड खत्म कराने के दाव चले थे। गुजरात से नरेंद्र मोदी ने पहले संघ के मदनदास देवी, सुरेश सोनी, भैय्याजी जोशी के मार्फत केंद्रीय संगठन की आडवाणी से मुक्ति का माहौल बनाया। परिणाम था जो वे नितिन गडकरी तब अध्यक्ष बने जिनका लोगों ने नाम भी नहीं सुना था। गडकरी देश में क्लिक होते लगे तो मोदी-जेतली ने दिल्ली के मीडिया और चिदबंरम के वित्त मंत्रालय का उपयोग करके गडकरी को ऐसा बदनाम बनाया कि उन्हे अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा। राजनाथसिंह का वापिस मौका बना।

और उसके बाद भाजपा का संगठन नरेंद्र मोदी के जादू में अंधा होता गया। अमित शाह अध्यक्ष बने तो उन्होने वही किया जो साहेब चाहते थे। अमित शाह के बाद संघ ने अपनी चलानी चाही। मगर मोदी-शाह ने होशियारी से भूपेंद्र यादव बनाम जेपी नड्डा का चुपचाप ऐसे विकल्प बनाया जिसमें संघ जेपी नड्डा के लिए रजामंद हुआ। कुछ जानकारों के अनुसार नवंबर में संघ टोली इस दलील पर अपनी पसंद का अध्यक्ष बनाएगी कि आप लोगों को जैसे सरकार चलानी हो चलाएं लेकिन संगठन को डिरेल नहीं होने देंगे। उसे वापिस पुराने चाल,चेहरे ,चरित्र पर लौटाना है। सवाल है क्या मोदी- शाह तैयार होगे या ऐसा होने देंगे।

मुश्किल है। दोनों सन् 2024 और 2029 की प्रधानमंत्री कुर्सी के मकसद में भाजपा को पूरी तरह अपने कंट्रोल और अपने निजी वफादार लोगों की टीम मे कनवर्ट करते आ रहे है। इसलिए अगले तीन महिनों में कैबिनेट, प्रदेशों में मुख्यमत्री, प्रदेश अध्यक्ष के चेहरों में ऐसे अपने भक्त और निराकार चेहरे बैठाएगें जैसा कि गुजरात में केबिनेट और संगठन बना है। संघ का इरादा जानते-समझते हुए मोदी-शाह रत्ती भर सरकार की रीति-नीति और संगठन की लीडरशीप में संघ का प्रभाव औरसंचालन नहीं बनने देंगे।

Amit Amoli

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