शख्शियत:  किसानों व वंचितों को उनका हक दिलाने को लगातार लड़ रहे हैं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत

शख्शियत:  किसानों व वंचितों को उनका हक दिलाने को लगातार लड़ रहे हैं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत
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श्रीगोपाल नारसन
हरिद्वार। उत्तराखंड में तो अभी विधानसभा चुनाव दूर हैं,लेकिन निकाय चुनाव व अगले साल राज्य की 5 सीटों पर लोकसभा चुनाव को देखते हुए राजनीतिक दल व राज्य के शीर्ष नेता सक्रिय नज़र आ रहे हैं । पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जनमुद्दों को लेकर लगातार सरकार से लोहा ले रहे हैं। एक के बाद के कार्यक्रम आयोजित कर वे न स्वयं घर बैठ रहे हैं और न ही अपने कार्यकर्ताओं को घर बैठने दे रहे हैं। तभी तो पहाड़ हो या मैदान, शहर हो या गांव,घर हो या चौपाल, शायद ही ऐसी कोई जगह हो, जहां पूर्व मुख्यमन्त्री हरीश रावत का कोई न कोई कार्यकर्ता मौजूद न हो।

लेखक श्रीगोपाल नारसन 
प्रत्येक कार्यकर्ता के दुःख -सुख के साथी हरीश रावत की एक बड़ी विशेषता यह है कि उन्हें अपने हर कार्यकर्ता का नाम व चेहरा याद रहता है। किस कार्यकर्ता से उन्हें क्या काम लेना है, कैसे काम लेना है और उन्हें क्या सम्मान देना है, यह भी हरीश रावत को बखूबी आता है।
मुख्यमन्त्री पद पर रहते हुए भी और मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरने के बाद भी वे अपने कार्यकर्ताओं को वही मान सम्मान देते रहे हैं, जो पहले से देते आए हैं। छोटे से छोटे कार्यकर्ता की बात और उन्हें सम्मान देने में माहिर हरीश रावत को अपने कार्यकर्ताओं के बीच रहकर कुछ विशेष उर्जा मिलती है। तभी तो उनके कार्यकाल में मुख्यमन्त्री आवास रहा हो या उनकी कोई जनसभा या फिर उनका अन्य कोई कार्यक्रम, जब तक कार्यकर्ताओं से वे घिरे न हों तब तक उन्हें आनन्द की अनुभूति नहीं होती। कार्यकर्ताओं से कंधे से कंधा मिलाकर चलना उन्हें अच्छा लगता है। अपने छोटे से छोटे घरेलू कार्यक्रमों में भी वे अपने आम और खास कार्यकर्ताओं को आमन्त्रित करना नहीं भूलते, वहीं यह भी कोशिश करते हैं कि वे सभी कार्यकर्ताओं के यहां भी उनके सुख-दुःख के अवसरों पर अवश्य जाएं। उनके इसी गुण व सरल स्वभाव के कारण उनके कार्यकर्ता उनके लिए उनके विरोधियों से भी भिड़ जाते हैं और हरीश रावत के पैरोकार की भूमिका निभाते हैं। हालांकि हरीश रावत को कई बार चुनावी असफलताएं भी झेलनी पड़ीं परन्तु न तो हरीश रावत का और न ही उनके कार्यकर्ताओं का कभी मनोबल कम हुआ है।


आज भी ऐसे कई कार्यकर्ता हैं , जिन्हें हरीश रावत सरकार बन जाने पर भी कुछ नहीं दे पाए, लेकिन न तो हरीश रावत यह बात भूलते हैं और न ही उनके वे कार्यकर्ता उनसे रूठते हैं। बल्कि आमजन के बीच जाकर हरीश रावत सरकार के समय की उपलब्धियों को गिनाना नहीं भूलते।
पहाड़ के सरंक्षण, संवर्द्धन और विकास के लिए उत्तराखंड राज्य की जो विकास परिकल्पना की गई थी वह विकास परिकल्पना अभी तक अधूरी है। अपने शासनकाल में राज्य के समग्र विकास के साथ चार धाम यात्रा,अमरनाथ यात्रा और मानसरोवर यात्रा के माध्यम से पहाड़ पर रह रहे लोगों की रोजी रोटी के साधन बनाने में जुटे रहे हरीश रावत ने पर्वतीय क्षेत्र को प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए भी नई कार्ययोजना तैयार की थीं। इसके तहत भूस्खलन एवं भूकम्प से होने वाले नुकसान को बचाना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल था। राज्य को विकास व उपलब्धियों के रास्ते पर ले चलने में कामयाब हो जाने पर भी हरीश रावत को पिछले चुनाव में जीत नहीं मिल सकी थी। जिसके पीछे मुख्य वजह यही रही कि आम जनता तक पहुंच बनाकर आम जनता को कांग्रेस व सरकार की उपलब्धियां न बताने से जीत के लक्ष्य को प्राप्त करने में कांग्रेस विफल रही थी।

  उत्तराखंड की राजनीति में कांग्रेस के वर्चस्व को बनाये रखने और मिशन 2024 को फतेह करने के लिए कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और पूर्व मुख्यमन्त्री हरीश रावत एक साथ होकर चल रहे हैं। वे चाहते हैं कि पहाड़ व मैदान के विकास कार्यो में कोई ठहराव न आने पाए। जिस पहाड़ और मैदान की संस्कृति तथा उसके भोलेपन पर सारी दुनिया फिदा है ,उसके महत्व को हरीश रावत ने बखूबी समझा है। पहाड़ की हरियाली ,उसकी खूबसूरती, उसकी जड़ी-बूटी व पहाड़ी व मैदानी व्यंजनों जैसी विरासत को बचाने के लिए हरीश रावत हमेशा सक्रिय रहे हैं। पूर्व मुख्यमन्त्री हरीश रावत की सोच है कि पहाड़ी क्षेत्रों मे रहकर पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत को जिन्दा रखा जाए क्योंकि जब तक पहाड़ को अपनी आत्मा समझकर हम पहाड़ को सरंक्षित करने की पहल नहीं करेंगे, जब तक पहाड़ की मजबूती और सुन्दरता के लिए पहाड़ पर नये वृक्षों का रोपण नहीं करेंगे, जब तक विकास के नाम पर बारूद से पहाड़ तोड़ने के लिए विस्फोट करना बन्द नहीं करेंगे, जब तक पहाड़ मेंआत्म निर्भरता और स्वावलम्बन के लिय रोजगार का सृजन नहीं करेंगे, तब तक पहाड़ को बचा पाना मुश्किल ही रहेगा । इसके लिए आम जनमानस की वही एकजुटता, सगंठन शक्ति, उत्साह, जोश और स्फूर्ति की आवश्यकता है, जो कभी नये राज्य की मॉंग को लेकर पैदा हुई थी। शायद पहाड़ की रक्षा और स्वयं के स्वाभिमान को बचाने के लिए लोगों को परेशानी भी उठानी पड़े, लेकिन पहाड़ की खुशहाली लौटाने के लिए यह जरूरी भी है। तभी पहाड़ का भोलापन, उसकी महक व संस्कृति बची रह सकती है।

  इन सब मुद्दों के साथ हरीश रावत वर्तमान में हरिद्वार जिले में बाढ़ विपदा से आहत किसानों को उनका मुआवजा बढ़वाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। वे किसानों के लिए घोषित 11 सौ रुपए प्रति बीघा मुआवजे को बहुत कम बताते हुए चाहते हैं कि मुआवजा बढ़ाकर 10 हजार रुपये बीघा किया जाए। वहीं हरीश रावत किसानों के गन्ना बकाया मूल्य भुगतान, नया गन्ना मूल्य 425 रुपये प्रति कुंतल करने व सड़़कों को गढ्ढा मुक्त करने की आवाज़ भी उठा रहे हैं। उन्हें अफ़सोस है कि एक तरफ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री राज्य में निवेशकों को बुलाने के लिए समिट आयोजित कर रहे हैं। वहीं, राज्य के 375 उद्योग बंद हो चुके हैं,जो दुर्भाग्यपूर्ण है। बहरहाल, हरीश रावत किसानों व वंचितों को उनका हक दिलाने के लिए कांग्रेस किसान सम्मान यात्राएं निकाल रहे हैं, जो उनकी लोकप्रियता को भी बढ़ा रहा है।

(लेखक राजनीतिक समीक्षक व वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Parvatanchal

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