मिथक: उत्तराखंड के लगभग सौ गांवों में नहीं मनाई जाती होली, पढ़िए क्या है वज़ह ?

मिथक: उत्तराखंड के लगभग सौ गांवों में नहीं मनाई जाती होली, पढ़िए क्या है वज़ह ?
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देहरादून। उत्तराखंड में इन दिनों रंगों के त्यौहार होली की धूम है, किन्तु उत्तराखंड के करीब सौ गांव ऐसे भी हैं,जहां रंगों का यह त्‍योहार नहीं मनाया जाता है।
राज्‍य के सीमांत पिथौरागढ़ जिले के धारचूला, मुनस्यारी और डीडीहाट के करीब सौ गांवों में होली नहीं मनाई जाती है। यहां होली मनाना अपशकुन माना जाता है। अनहोनी की आशंका में यहां के ग्रामीण होली नहीं मनाते हैं। चीन और नेपाल सीमा से लगे इन गांवों में होली की धूम की जगह गहरा सन्‍नाटा पसरा छाया रहता है। पुराने समय से यहां यह मिथक चला आ रहा है, जिस कारण यहां होली मनाना वर्जित है।
धारचूला, मुनस्यारी और डीडीहाट में होली न मनाने के अलग-अलग कारण हैं। मुनस्यारी में होली मनाने पर किसी अनहोनी की आशंका रहती है। डीडीहाट में अपशकुन तो धारचूला के गांवों में छिपलाकेदार की पूजा करने वाले होली नहीं मनाते हैं। दरअसल धारचूला के रांथी, जुम्मा, खेला, खेत, स्यांकुरी, गर्गुवा, जम्कू, गलाती सहित अन्य गांव शिव के पावन स्थल छिपलाकेदार में स्थित हैं। स्‍थानीय लोगों के अनुसार पूर्वजों के अनुसार शिव की भूमि पर रंगों का प्रचलन नहीं होता है। इस परंपरा का आज तक पालन किया जा रहा है। मुनस्यारी के चैना, पापड़ी, मालूपाती, हरकोट, मल्ला घोरपट्टा, तल्ला घोरपट्टा, माणीटुंडी, पैकुटी, फाफा व वादनी सहित कई गांवों में होली नहीं मनाई जाती है।
स्‍थानीय लोगों की मानें तो एक बार होल्यार देवी के प्रसिद्ध भराड़ी मंदिर में होली खेलने जा रहे थे। तब सांपों ने उनका रास्ता रोक दिया था। इसके बाद होली गाने या होली खेलने वाले के घर में कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती थी। तब से यहां होली नहीं मनाई जाती। डीडीहाट के दूनकोट क्षेत्र के स्‍थानीय निवासी बताते हैं कि प्राचीन समय में गांवों में होली मनाने पर कई प्रकार के अपशकुन हुए। तब से होली नहीं मनाई जाती है। इतना ही नहीं यहां के लोग पास के गांवों में मनाई जाने वाले होली आयोजन में भी शामिल नहीं होते हैं।

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